प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को मन साफ़ रखने की प्रेरणा दे रही है वह कहती है कि ईश्वर की बाते समझने के लिए तन की नहीं मन की आँखों की ज़रूरत है। बाहरी खूबसूरती बस कुछ दिन की होती है लेकिन जिसका मन साफ़ हो उसको सफलता ज़रूर मिलती है। हम कुछ भी काम शुरू करे उसे करने की हमारी नियत अच्छी होनी चाहिए।
हमे अपनी तुलना किसी से नहीं करनी चाहिए क्योंकि हर मानव में कुछ न कुछ अलग होता है जो उसे दूसरे से अलग या अनोखा बनाता है इसलिए हमे किसी की सफलता से जलना नहीं चाहिए, ज्ञानी लोग बस अपने से मतलब रखते है, हर मनुष्य को बस खुदको अच्छा बहुत अच्छा बनाने में ध्यान देना चाहिए, क्योंकि बूँद बूँद करके सागर बनता है एक मनुष्य जब अपने को ठीक करेगा तो सब उसे देख उससे प्रेरणा लेंगे और एक-एक करके हर इंसान बस अपने को सुधारने का सोचेगा। सबको ऐसा लगता है हम ठीक है लेकिन ज्ञान का अंत कभी नहीं होता। हम मरते दम तक कुछ न कुछ सीखते रहते है। लेकिन याद रहे सीखने से ज़्यादा ज़रूरी है ज्ञान को अपने जीवन में उतारना।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
तन से कही ज़्यादा मन को साफ़ रखना है ज़रूरी।
मैंने नहीं, ईश्वर ने ही दी है इस बात को मंज़ूरी।
कपड़े चाहे भले ही मैले हो.
मन से सच्चा इंसान तो ईश्वर को भी भाता है।
इस बात को समझने वाला,हर मानव ज्ञानी ही कहलाता है।
ऐसा मानव ईश्वर को अपने मन में बसाता है।
बाहरी खूबसूरती से नहीं, वह सबका दिल,
अपने अच्छे कर्मो से जीत जाता है।
बाहरी खूबसूरती तो कुछ सालों में ढल जाती है।
किसी के अच्छे होने का प्रमाण,
तो उसकी आजीवन की सच्ची मेहनत ही बताती है।
अच्छा मनुष्य आजीवन अच्छा ही रहता है।
अपने दुखो की पीड़ा वो हर एक से नहीं कहता है।
बसाके अपने प्रभु को अपने अंदर,
बस उनसे अपनी, हर एक बात, वो कहता है।
दुनियाँ की इस भीड़ में भी, वो अकेला बस अपने में ही रहता है।
दुखो के पल भी,वो ख़ुशी से सहता है।
अपने को बस संभाले वो अपने दायरे में ही रहता है।
धन्यवाद, कृप्या कर आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।