भारतीय संस्कृति और सभ्यता में मंदिरों के योगदान एवं उनके महत्व

हम इतिहास इसलिए नहीं पढ़ते ताकि हमें ये जानकारी हो कि ईसापूर्व छः सौ साल पहले कौन राजा था या अलाउद्दीन खिलजी के जमाने में आमिर ए आखुर पद पर कौन था बल्कि हम इतिहास इसलिए पढ़ते हैं ताकि हम जान पाएं की अतीत में हमने कौन-कौन सी गलतियां की हैं उसका परिणाम क्या हुआ और क्या वहीं गलतियां हम या हमारा समाज कही दुबारा तो नहीं दुहरा रहा है. आज विशेष तौर पर हम बात करते हैं भारतीय संस्कृति और सभ्यता में मंदिरों के योगदान उनके महत्व और आज के समय से उस समय की तुलना के बारे में.

भारतीय जनमानस में मंदिरों का महत्व केवल एक देवस्थान या पूजा-पाठ के केन्द्र के रूप में नहीं रहा, मंदिरों में ज्ञान विज्ञान ज्योतिष खगोल आयुर्वेद आदि की शिक्षा भी दी जाती थी, मंदिर एक तरह के बैंक का भी काम करते थे. लोगों के जीवन में मंदिर का महत्व था इसलिए मंदिरों में भी विविधता थी, इसी विविधता की देन थी कि आगे चलकर जो भी देवस्थान थे वहीं शिक्षा के भी केन्द्र उन्नत हुए.

Indian Temples and Indian History

जनसरोकार के कार्य करने के लिए राजाओं के द्वारा मंदिरों को गांव के गांव दान में दिए जाते थे, दान का अर्थ ये नहीं था कि उस गांव के लोग मंदिरों के गुलाम थे बल्कि उस गांव से मिलने वाले कर में मंदिरों की हिस्सेदारी थी एवं मंदिरों से लोगों की भावनाएं इस तरह जुड़ी थी कि मात्र मंदिरों को तोड़ने की वजह से हिंदू जनमानस कभी मुस्लिम समाज को स्वीकार नहीं कर पाया और मंदिर ही इस्लामिक हुकूमत से लड़ने के लिए एक माहौल तैयार करते रहे.

मुस्लिम और ईसाई आक्रांताओं का इतिहास रहा है कि उन्होंने जहां-जहां भी कब्जा किया वहां-वहां इस्लामिक व ईसाई तंत्र की स्थापना कर दी, मगर भारत एक अपवाद रहा क्योंकि भारत के पास पहले से ही इनसे उन्नत विचारधारा थी और एक बेहतर धर्म था, अंग्रेजों ने पुर्तगालियों और फ्रेंच की गलतियों का अध्ययन कर के भारत में धीरे-धीरे अपना शासन विस्तार किया इसीलिए अंग्रेजों ने कभी मंदिरों पर तोड़फोड़ नहीं की बल्कि आस्था पर तोड़फोड़ की, रेल की पटरी बिछाने से भी पहले अंग्रेजों ने मंदिरों से शैक्षणिक व्यवस्था को खत्म किया.

इतना सब होने के बाद भी चूंकि पीढ़ियों से मंदिर और ईश्वर के प्रति जो आस्था भारतीय जनमानस में थी उसको विस्थापित नहीं किया जा सका, ध्यान रहे कि हमारी आस्था पर ये हमला केवल दो सौ साल का नहीं था बल्कि उसके पहले भी छः सौ साल से ये हमला होता आया था यानी छः सौ साल तक हथियार और दो सौ साल तक बौद्धिक हमला झेलने के बाद हमारी आस्था और मंदिरों का मूल ताना-बाना टूटा तो नहीं था मगर कुछ फर्क तो जरूर पड़ा था.

वो फर्क यही था कि देश का प्रथम प्रधानमंत्री जहां सोमनाथ मंदिर के जिर्णोद्धार का खुला विरोध कर रहा था वहीं देश का प्रथम राष्ट्रपति खुला समर्थन इसके बावजूद भी हम नेहरू से उतनी नफ़रत नहीं करते जितना गजनवी से…

इतना सब होने के बाद भी जब अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो काले अंग्रेजों ने अपना अंतिम दांव खेला और मंदिरों के दान और धन को सरकारी पहरे में रख दिया यानी अब चाहकर भी मंदिर अपने धन का उपयोग अपनी मर्जी से नहीं कर सकते हैं, एक तरफ मंदिरों के धन पर सरकारी नियंत्रण हो गया दूसरी तरफ वामपंथियों और इस्लामिक संस्थाओं को मंदिरों में होने वाली सलाना आय का ब्यौरा दे दिया गया जिसका उपयोग वो सनातन धर्मियों को अपने धर्म के खिलाफ भड़काने के लिए अक्सर करते हुए पाएं जाते हैं.

सोचिए कि भारत सरकार के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड और इसाई मिशनरियों के पास है, विदेशों से संदिग्ध रूप से सबसे ज्यादा चंदा ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक संस्थाओं के पास आता है मगर सरकार को इन पर नियंत्रण करना जरूरी नहीं लगा. जहां राजनीतिक दल अपने पार्टी को मिलने वाले चंदे का हिसाब और खर्च पर सरकारी नियंत्रण नहीं रखते वहां ऐसा क्या जरूरी था कि मंदिरों के दान में मिले धन पर ही सरकारी नियंत्रण हो.

हर मिशनरी स्कूल में गिरजाघर मिलेगा, बाइबिल की प्रार्थना होती है, क्रिसमस को धूमधाम से मनाया जाता है साथ ही पढ़ाई भी होती है, कुछ याद आ रहा है, यानी आज जो काम मिशनरी स्कूलों में हो रहा है वहीं काम एक समय में हमारे मंदिरों में हुआ करता था उसी की देन थी कि हमारे धर्म की जड़ें इतनी गहरी थी और आज वही काम ईसाई मिशनरी कर रही है.

एक तरफ उनके प्रयासों को सफल बनाने के लिए सरकारी प्रोत्साहन और दूसरी तरफ हम कोई प्रयास न करें इसलिए नियंत्रण. नतीजा, धर्म के प्रति ईश्वर के प्रति अनासक्ति रखने वाले व्यक्तियों के समूहों के और संस्थाओं की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है, देश के जाने-माने विश्वविद्यालयों में हिंदू देवी-देवताओं पर अपमानजनक टिप्पणियां करने के लिए सेमिनार गठित हो रहे हैं और डेनमार्क म्यामार के किसी घटना पर हमारे देश में तोड़फोड़ हो रही है.

उनकी जागरूकता बढ़ रही है और हमारी खत्म क्यो ??? क्योंकि हमारी जागरूकता निर्मित करने वाली संस्थाओं को सरकार ने खत्म कर दिया और उनकी जागरूकता बढ़ाने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहन.

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