मुसकान मासूमियत वाली

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को अपने जज़्बात खुल के बताने की कोशिश कर रही है वह सोचती है कि क्या कभी ऐसा दिन आयेगा जब हर इंसान केवल मानवता का ही धर्म अपनायेगा और कभी भी हमारे देश में लड़कियों को खुश होकर अपना जीवन जीने दिया जायेगा.

 

innocence asifa

मुसकुराती थी वो अपनी दुनिया में
खुश थी अपने जानवरों के साथ
खेलती थी दौड़ती थी उनके साथ
पर जा जाने क्यों उसकी हंसी चुभने लगी जमाने को
देखने लगे उसे दबोचने के लिए

कि हाथ आए तो बस कुचले उसे उसकी मासूमियत सहित
क्यों है यह जमाना ऐसे हैवानों से भरा
इनको तो राक्षस भी नहीं कह सकते
क्योंकि वो भी स्त्री उठाते थे पर मर्यादा में रहकर
इनकी मर्यादा की कल्पना तो दूर कही रोती है,

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क्योंकि जिनके पास बचपन को कुचलने का जस्बा मौजूद है
उनमें हैवानियत की हदे किस हद तक है
इसका अहसास लगना आसान नहीं
बस यही लगता है अब
अब बेटी खुद ही कोख में आने से पहले बोलेगी

बाबा मुझे ना आना इस देस
जहां बचपन की अहमियत ही नहीं है।

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