प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को लहरों का जीवन बता रही है,वह कहती है लहरें हमेशा अपने दायरे में रहती है लेकिन जब उनके गर्भ में बवंडर मचता है तब वह अपना आपा खो देती है। कवियत्री कहती है हर इंसान के जीवन में दुखो की लहरें तो आती ही आती है और जब दु:ख असहनीय हो जाता है तो इंसान अपना आपा खो देता है।
कवियत्री कहती है कि कोई भी मनुष्य अपने दु:खो से तो बच नहीं सकता, इससे बचने के लिए इंसान को ये समझना ही होगा की आज अगर दु:ख है तो कल सुख आयेगा ही आयेगा । हमे दोनों ही परिस्थिति में शांत रहकर परिस्थिति का सामना करना चाहिए। जैसे लहरें अपने सर के ऊपर नांव चलवा कर भी दूसरों को ख़ुशी देकर मुस्कुराती है। वैसे ही हमे भी एक दूसरे की ख़ुशी की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। जब हर मनुष्य ऐसा सोचेगा तो दुख आकर कब चला जायेगा किसी को पता भी नहीं चलेगा।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
ज़िन्दगी के दुख,
लहरों की तरह ही तो होते है।
जिसके कुछ पल उभरने में हम,
अक्सर अपने दु:खो में रोते है।
लहरें आकर,हमें ज़िन्दगी का,
एक गहरा ज्ञान बताती है।
दु:खो में डूबे व्यक्ति को,
ये हौसला दे जाती है।
लहरें अपने दुखो को थामे,
कभी चुप रहकर अंदर ही,
खून का घूट पी जाती है।
बवंडर मचता जब इसके गर्भ में,
तब आपा ये अपना खो जाती है।
चुप रह कर नाचती गाती,
ये सबका हौसला बढ़ाती है।
अपनी लहरों में सबको लेके,
सबको ये पानी की दुनियाँ की सैर कराती है।
अपनी इसको खबर नहीं,
पर सबकी नईया ये पार लगाती है।
छोड़ कर सबको अपनी मंज़िल पर,
ये भी अपने घर को जाती है।
अपने सर पर नांव को रखकर,
ये उसे भी अपने दम पर हिलाती है।
ऐसे माहौल में मद-मस्त कर,
सबको,ये कैसे हसांती हैं।
धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।