प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को वक़्त रहते अपनी गलती समझने की प्रेरणा दे रही है। वह कहती है हमारी ख्वाहिशें इसलिए पूरी नहीं होती क्योंकि यातो हम बीच में ही हार मान लेते है या हार कर अपनी किस्मत को कोसने लगते है। अगर इंसान हार न मान कर अंत तक सही दिशा में लड़े तो अंत में उसकी और उसके अपनों की आँखों में नमी तो होगी लेकिन ख़ुशी की। कवियत्री कहती है हम खुद ही अपनी बीमारियों को पालते है हमे सब पता होता है फिर भी गलत खाने से हम खुदको रोक नहीं पाते। गलत आहार के सेवन से हम कई प्रकार की बीमारियों की चपेट में आजाते है, फिर न चाह कर भी हमे जीवन में किसी के सहारे की ज़रूरत होती है। आखिरी पंक्तियों में कवियत्री कहना चाह रही है कि जीवन में ऐसे बहुत से मोड़ आते है जब हमे लगता है हम अकेले है और हमारा कोई नहीं लेकिन याद रहे दोस्तों खाली बैठ कभी सोचना गलती हमसे ही कही हुई होगी क्योंकि रिश्तों को समझना और निभाना आसान नहीं। हमारे सुख और दुख दोनों के कारण हम ही होते है। आज यहाँ कल न जाने कहाँ होंगे, मर कर भी तो यही है आना तो क्यों न यहाँ रहकर बस अपनों के संग प्रेम ही बाटे, क्योंकि कुछ रिश्तों का बंधन जन्मो जन्मांतर तक का होता है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
कुछ तो गलती रही होगी मेरी,
ख्वाहिशों की पूर्ति में जो हो रही है देरी।
जो न होती मेहनत में कमी,
होती नहीं इन अखियों में नमी।
[ये भी पढ़ें: कवि का दर्द]
कुछ तो गलती रही होगी मेरी,
स्वास्थ को ठीक होने में जो हो रही है देरी।
जो बेकार के खाने में मन न मचलता,
आज ठीक रह कर, मैं दूसरे के सहारे से न संभलता।
[ये भी पढ़ें: कुछ तो गलती रही होगी मेरी]
कुछ तो गलती रही होगी मेरी,
बैठती हूँ खुद के संग मैं अक्सर अकेली।
ज़िन्दगी बन जाती अक्सर एक ऐसी पहेली,
अपने संग न होता फिर कोई अपना साथी और सहेली।
रिश्तों को निभाने में चूक न जाना।
छोड़ कर इस दुनियाँ को वापिस यही तो है आना।
धन्यवाद!