प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री कल्पनाओ में माँ से कह रही है तुम हो तो कही इस दुनियाँ में लेकिन तुम्हारी स्मृति की कल्पना हर इंसान अपने-अपने तरीके से करता है। वह सोचती है ईश्वर की बातें समझ के उसे अपने जीवन में उतारना सबके बस की बात नहीं होती क्योंकि ईश्वर तो दुनियाँ के कण-कण में समाये हुये है फिर इंसान अपनों के संग बुरा कर ईश्वर की प्राप्ति कैसे कर सकता है?सही मार्ग पर चलने वालो के पास धन, व ज्ञान की कमी नहीं होती क्योंकि वो अपनी मेहनत से सब कुछ ईमादारी के रास्ते पर चल कर प्राप्त कर लेते है। अपना हर कर्म ईश्वर को ध्यान करके करते है और गलत दिशा की ओर जाने से भी डरते है क्योंकि उन्हें पता होता है ईश्वर की लाठी बे आवाज़ होती है। याद रखना दोस्तों कितनी पूजा पाठ करलो, ज्ञान अगर जीवन में नहीं उतारा तो सब बेकार है। ये मेरी कविता इस नवरात्री के पवित्र पर्व पर माँ को समर्पण।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
तुम्हारी छवि कैसी है,
ये किसी को नहीं पता।
तुम हो कही तो हो,
बस इतनी बात ही है हम सबको पता।
कितनी समझती हो तुम हमारी पीड़ा,
जननी अनमोल है नहीं है वो कोई क्रीड़ा।
फिर क्यों हम तुम्हे समझ नहीं पाते?
ठोकरे खाकर ही क्यों?
हम तुम्हारी शरण में आते।
हमसे कही दूर नहीं,
सृष्टि के कण-कण में तुम बस्ती हो।
गलत समझे जो तुम्हारी बातें,
ऐसे मानव की मूर्खता को देख,
क्या तुम भी उस पर हस्ती हो?
अपने ज्ञान के भण्डार से,
क्यों सबको कर्म सिद्धांत नहीं समझाती हो?
लेके कड़ी परीक्षा अपने सच्चे भक्तो की,
ज्ञान की ज्योत तुम सबके मन में क्यों नहीं जलाती हो?
तुम्हे समझना सबके बस की बात नहीं।
गलत राह पर चलने वालो का,
मिलता तुम्हारा साथ नहीं।
आशीष मिलता तुम्हारा,
जिसने तुम्हे सच्चे दिल से पूजा।
सही मार्ग पर चलने के अलावा,
तुम्हे मनाने का रस्ता नहीं कोई दूजा।
धन्यवाद