प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि जीवन में अक्सर कभी-कभी उम्र के बड़े होने पर रोना आता है क्योंकि कही न कही हर इंसान अपने अंदर के बच्चे को ज़िन्दा रखना चाहता है। कवियत्री सोचती है अक्सर हमारे माता पिता हमे गंभीर होता देख वो हमे हमारे हाल पर छोड़ देते है लेकिन जीवन के हर पड़ाव में छोटो को बड़ो की ज़रूरत होती है क्योंकि बच्चे चाहे कितने भी बड़े क्यों न होजाये वो अपने माता पिता से हमेशा छोटे ही रहते है। एक सुझाव कवियत्री इस दुनियाँ को देना चाहती है कि अगर बच्चा बनकर कभी मन हल्का हो जाये तो बच्चा बनने में भी कोई बुराई नहीं कम से कम अपनों से तो अपनी मन की बात मत छुपाओ क्योंकि न जाने जीवन में कौन सा पल आखिरी बन कर हमारे सामने आये और हम फिर यही सोचते रह जाये की काश हम अपने मन की बात अपनों को बताते। बड़े होकर अपने माता पिता को अपना दोस्त बनालो जिससे कभी कोई अपने को अकेला न समझे।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
कल तक कोई हमारे साथ था.
हमारी खामोशियों को भी सुन कर,
हमारे सर पर उनका हीतो हाथ था।
जवानी के रहते वो हाथ क्यों पीछे छूट जाता है?
हमारी नादानियों में भी अब,
उन्हें हमारा वही मासूम चेहरा क्यों नज़र नहीं आता है?
बस इसलिए क्योंकि अब हम बड़े होगये?
हमे समझदार बनता देख,हमारे बड़े क्यों हमसे दूर होगये?
अपनी उलझनों में इतने व्यस्त, की वो अपने में ही कही खोगये।
किसने कहाँ है बड़े होकर,
बचपन कही खोजाता है।
ख्वाहिशो के रहते हर समझदार भी अकेले में कही अश्क बहाता है।
अपने गमो को अपने में रख कर वो दूसरों से अपनी बात छुपाता है।
और बच्चा अपनी मासूमियत में,
अपना दुख सरे आम, लोगो को बताता है।
धन्यवाद