अनेक रूप होते है हर इंसान के

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि हर इंसान के कई रूप होते है जैसे हमे ही गुस्सा आता है हमे ही प्यार आता है तो कभी हम ही जीवन से चिड़ने लगते है और ऐसा नहीं है कि ऐसा केवल कुछ के साथ ही होता है ऐसा तो हर इंसान के साथ होता है बस फर्क इतना है हर इंसान अपनी परिस्थिति को अपने हिसाब से समझता है और अपने हिसाब से व्यवहार करता है.

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तो बात अब ये उठती है कि ज्ञानी और अज्ञानी में क्या फर्क है। ज्ञानी जन अपने हर रूपों को सही दिशा में उपयोग करते है जैसे अगर गुस्सा गलत के खिलाफ करा जाये तो वो गलत नहीं, लालच अगर कुछ बड़ा और सही दिशा में हासिल करने की हो, तो वो गलत नहीं। चिड़चिड़ाहट के बाद अपनी गलती स्वीकार कर उसे सुधारे तो वो गलत नहीं। दोस्तों मानव जीवन बहुत ही मुश्किल से मिलता है तो क्यों न सही वक़्त पर खुदके रूपों को समझे और अपनी गलत आदतों को भी सही दिशा दे। याद रखना दोस्तों हमारे सुख और दुख दोनों के कारण हमारे अनेक रूप ही है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

इंसान भी गिरगिट की भाती अपना रंग बदलता है।
ठोकरे खाकर जीवन की,फिर जाकर वो कही संभलता है।
कभी करे गुस्सा तो कभी प्यार अपनों पर लुटाता है।
अपने कई रूपों के साथ, वो वक़्त-वक़्त पर बदल जाता है।

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अपनी ख्वाहिशों की पूर्ति में, वो दूसरों को भूल जाता है।
अपने आराम के खातिर वो दूसरों पर हुकुम चलाता है।
बदलना ही है रूप, तो अच्छाई के लिए बदलना।
सवार कर खुदको,पहले तुम ही संभलना।
अपने हर रूप को सही दिशा तुम देना।
अपने स्वार्थ के खातिर, तुम कभी किसी से कुछ न लेना।

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गुस्सा भी करना तो अच्छे के लिए.
जीना तो ऐसे जीना, जैसे हो तुम यहाँ सबके लिए।
हर एक इंसान के कई रूप होते है।
देके उन रूपों को सही दिशा, ज्ञानी मनुष्य चैन से सोते है।
जो न समझे अपने अनेक रूपों की कहानी।
जीवन के हर पड़ाव में मात खाकर वो ही अक्सर रोते है।

धन्यवाद।

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