तारानगर में गौ पर्यावरण एंवम अध्यात्म चेतना यात्रा निकाली। इस यात्रा का प्रारंभ नगरपालिका के सामने से होकर तारानगर के सभी मुख्य मार्गो से होते हुए सरावगी धर्मशाला के सामने पहुच कर रुकी। इस यात्रा में युवा भजनों पर नाचते हुए आगे बढे वही महिलाएं कलश लेकर यात्रा के साथ साथ आगे बढ़ी।
यात्रा के सरावगी धर्मशाला पहुचने पर वहा अध्यात्म के ऊपर, भारतीय संभ्यता -संस्कृति पर गुरु देव ने प्रवचन दिए। इस मौके पर गाय को माता क्यों कहते है, इसके व्यवहारिक कारण एवम शास्रो के कारण पर चर्चा हुई। इसमे आज के युग में प्रेम, आनंद, सुख ख़त्म होते जा रहे है, इस पर भी चर्चा करते हुए गुरुदेव ने इन्हे वापस लाने का मार्ग सुझाया।
धरती माता का कर्ज कैसे चुकाए, राष्ट्र की उन्नति एवम रक्षा में योगदान किस प्रकार दे इस पर भी गुरु देव ने विस्तृत जानकारी दी। इस मौके पर गुरु देव ने कहा हल्दी घाटी को अगर कुरुक्षेत्र की संज्ञा दे दी जाये तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी, क्योंकि कुरुक्षेत्र भी धर्म अधर्म का युद्ध था और हल्दी घाटी भी भारतीय सभ्यता को बचाने, विदेशी आक्रताओ से संधि न करने के कारण हुआ था।
हल्दीघाटी भी देश को बचाने के लिए हुआ था। साथ ही उन्होंने कहा कि देश की रक्षार्थ, हमारी सभ्यता सस्कृति को बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने अपने महलों के सुख को त्याग कर जगलो में रहना स्वीकार किया था। गौरतलब हो की 4 दिसम्बर 2012 को गौ पर्यावरण एवम चेतना यात्रा हल्दी घाटी से प्रारंभ होकर 31 वर्षो में सम्पूर्ण भारत में चेतना जाग्रत करने को लेकर प्रयासरत है।
[स्रोत- विनोद रुलानिया]