सच्चा गुरु

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियां को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि सच्चा गुरु वही होता है जो अपने शिष्य को सहजता के साथ कुछ सिखाये उसकी खामियों को सही होने तक उसका साथ दे क्योंकि किसी भी इंसान में परिवर्तन एक दम नहीं होता। गुरु और शिष्य का एक अनोखा रिश्ता होता है जैसे गुरु को एक अच्छे शिष्य की तलाश होती है वैसेही एक सच्चे शिष्य को भी सही गुरु की तलाश होती है जो उसे समझे और धीरे-धीरे सफलता के शिखर पर पहुँचाये। गुरु वो नहीं जो तुम्हे गलत करता देख भी चुप रहे गुरु वो है जो तुम्हे गलत दिशा में जाने से रोके लेकिन ये भी एक सच है इंसान जैसा खुद होता है उसे वैसे ही लोग पसंद आते है।

सच्चा गुरु

उदाहरण के तौर पर हम खरगोश और कछुये की कहानी को ले सकते है खरगोश में घमंड था कि वो जीत जायेगा क्योंकि उसकी रफ़्तार कछुये से बहुत अधिक होती है लेकिन कछुआ बिना रुके बस अपने लक्ष्य कि ओर बढ़ता गया चाहता तो वो भी विश्राम कर सकता था लेकिन उसने अपना धैर्य नहीं खोया और हर परिस्थिति में बस सही दिशा कि ओर बढ़ता गया उसने अपनी जीव आत्मा की सुनी हम सबका गुरु हमारे अंदर है बस हम ही उसकी सुनना नहीं चाहते। बस यही एक मात्र कारण था उसकी सफलता का इसलिए मैं कवियत्री उस कहानी के कछुये को अपना गुरु मानती हूँ याद रखना दोस्तों सफलता भले ही देरी से मिले लेकिन कभी भी सही पथ पर चलने से खुदको मत रोकना। सच्चा गुरु वही है जो खुद उस मार्ग पर चले जिस मार्ग पर चलने के लिए वो अपने शिष्य को कह रहा है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

गुरु वो है जो अपने शिष्य की,
गलतियों को सहजता से सुधारता है।
उसे अपने प्यार में बांध कर,
वो उसे धीरे धीरे सवारता है।
हर शिष्य ही अपना अपना वक़्त लेता है।
अपने गुरु को पहचान,
फिर ज़िन्दगी भर उन्हें वो दुआये ही देता है।
तलाश करो ऐसे गुरु की,
जो तुम्हारी परिस्थितियों को समझ सके।
तुम्हे गलत करता देख,
निगाहे भर, वो बस तुम्हे यूही ना तके।
सहजता से दिखाये जो सही दिशा का मार्ग,
ऐसे गुरुओ ने ही बनाई,
इस दुनियाँ में अपनी अनोखी पहचान।
जो जानते थे कछुआ,
धीरे धीरे चल कर भी,
जीवन की परीक्षा में जीता था।
उसके सच्चे गुरु ने ही बस जाना था,
उसपर उस वक़्त क्या कुछ नहीं बीता था।
हार ना मानी उसने, धीरे धीरे चल कर भी,
रुका ना वो कछुआ, ज़िन्दगी की धूप में जल कर भी।

धन्यवाद

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