प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि हम सब यहाँ कुछ ही पल के मेहमान है। ज़िन्दगी के हर पड़ाव से सबको गुज़रना पड़ता है सबको बुढ़ापा आता है हमने देखा है बहुत से लोग जीवन के हर पड़ाव में शान से जीते है तो कुछ वक़्त पर जीवन की गहराई को न समझ, अपना सब कुछ खोकर फिर बाद में पछताते है।
ईश्वर ने सबको समान क्षमताये दी है लेकिन बहुत से लोग अपनी क्षमताओं को समझ नहीं पाते और दूसरे को देख, खुदकी क्षमताओं को नहीं समझ पाते। जैसे आपके हिस्से का खाना खाकर कोई आपकी भूख नहीं मिटा सकता वैसे सी किसी और के कमाये हुये धन से आपका घर नहीं चल सकता। इस दुनियाँ में सबको अपना ख्याल खुदही रखना होता है। सबको अपनी क्षमताओं को वक़्त पर समझना होगा क्योंकि बुढ़ापा सबको आता है, हर इंसान ही जीवन में ठोकरे खाता है। इन ठोकरों से कोई नहीं बच सकता इसलिए अपना जीवन सावधानी से जीने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
बुढ़ापा तो सबको आता है.
सबके चेहरे पर एक दिन झुर्रियों का पर्दा छाता है।
उस वक़्त ही इंसान को ये ख्याल क्यों आता है??
बेफिक्र होकर अपनी ज़िन्दगी, जो मैं यू न जीता।
आज बुढ़ापे में,खुदका वजूद खोता देख, मैं यू न रोता।
ऐसा नहीं की गलत राह पर जाने से मुझे किसी ने रोका नहीं।
मेरी गलत हरकतों पर मुझे किसी ने टोका नहीं।
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पर कहाँ सुनता था तब मै किसीकी,
मुझे कहाँ परवाह थी कभी किसीकी ??
आज उन यादो का कहर मुझपे बरसता है।
लादो कोई फिर एक बार मेरी जवानी,
उन लम्हों को अब ध्यान से, फिर जीने को, ये मन तरसता है।
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मेहमान ही तो हूँ, ये बात क्यों देर से समझमे आती है।
माया की इस दुनियाँ में, ज़िन्दगी कैसे उलझ जाती है।
सूर्य के तप की अग्नि से,एक कली भी कुछ वक़्त में खिल जाती है।
अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर, फिर वो भी मुर्झा के इस दुनियाँ से चली जाती है।
पर तपने के समय में,लोग अक्सर अपने अस्तित्व्य का सच भूल जाते है।
बीते समय को याद कर, लोग अक्सर पछताते है।
धन्यवाद