गलती से गलती तो अक्सर हो ही जाती है।

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि दुनियाँ में ऐसा कोई इंसान नहीं जिससे कभी कोई गलती न हुई हो। लेकिन गलती करने के बाद इंसान सबसे बड़ी गलती यह करता है की वो अपनी गलती को लेके बैठा रहता है और खुदको माफ़ नहीं करता। कवियत्री सोचती है जिस क्षण इंसान को अपनी गलती का एहसास मन से होजाता है उसी क्षण इंसान की सारी गलती ईश्वर भी माफ़ कर देते है लेकिन इंसान अफ़सोस के अंधकार में अक्सर खुदको माफ़ नहीं कर पाता और अपनी गलती पर अक्सर अश्क बहाता है। Mistakeकवियत्री सोचती है इंसान को खुदको माफ़ कर खुदसे ये वादा करना चाहिये कि वह अब ये गलती वापिस नहीं दोहरायेगा। याद रखना दोस्तों महफ़िल में बस खुदपर लगाम लगाने की ज़रूरत है अकेले में चाहे तुम कितनी मस्ती करलो क्योंकि हमे गलत करता देख लोग हमारे बारे में गलत धारणा बना लेते है।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

गलती से गलती तो अक्सर ही, सबसे हो जाती है।
अपने को कर उदास तू , क्यों अकेले में कही अश्क बहाती है?
गलती कर फिर सही दिशा में एहसास कर, गलती, गलती नहीं रहती।
अपने को सता कर तू क्यों बार-बार खुदसे ये कहती?
ये कैसा गुनाह मुझसे, अनजाने में हो गया।
मेरा अस्तित्व क्या अब, मेरे अपनों के बीच से खो गया?
मेरी इस उदासी के रहते, मेरा मन भी मेरे दुख में रो गया।
अब खुदको संभाल, इस गलती को सुधारना है।
अपने अच्छे व्यवहार से ही मुझे अपना जीवन सवारना है।
जो बीत गया सो बीत गया,अब उन बातो पर विचार क्या देना?
बितानी है सबको यहाँ अपनी ज़िन्दगी अकेले, किसी को क्या किसी का लेना।
इस दुनियाँ की भीड़ में भी, हर इंसान ही है यहाँ देखो कितना अकेला।
खुदको माफ़ कर, खुदसे प्यार करना सीख ले।
लगाम लगा महफ़िल में खुद पर, अकेले में भले ही तू कितना चीख ले।

धन्यवाद

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.