प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को इस छोटीसी कविता के माध्यम से जीवन से जुड़ी एक गहरी बात समझाने की कोशिश कर रही है कि जहाँ प्यार होता है वहां तकरार भी होती है लेकिन अगर प्यार गहरा होतो वो तकरार भी कुछ ही पल में प्यार में बदल जाती है और जहाँ तकरार ही तकरार रहे वहां कभी सच्चा प्यार था ही नहीं।कवियत्री सोचती है जैसे समुन्दर की लेहरो से लड़कर कश्ती को बस तेज़ हवाओ का सहारा होता है की वो हवाये ही उसे किनारे तक पहुँचा देंगी उसी तरह मानव के जीवन में आये हुये दुख उस तेज़ हवा की भाती ही काम करते है उन हवाओ के रहते मानव बहते-बहते किनारे तक पहुँच ही जाता है।
ज्ञानी जनो ने ठीक ही कहाँ है जो जितना दुख झेलता है उसे उतना सुख भी प्राप्त होता है लेकिन ये भी निर्भर करता है हर इंसान पर, की वो अपने दुखो को कैसे लेता है। दुख की घड़ी में भी जिसने हमेशा अच्छा ही सोचा वही इंसान असली सुख का आनंद लेता है और अपने जीवन काल के रहते दुनियाँ के लिए कुछ अच्छा और बड़ा कर जाता है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
कोई जो आज है रूठा,
वो कल मान जायेगा।
अपने प्यार की गहराई का एहसास,
वो जल्द ही तुझे करायेगा।
क्योंकि जहाँ होता प्यार वहाँ तकरार भी चलती है।
अपनों की कमी तो बार-बार,
हर एक को ही खलती है।
ज़िन्दगी एक कश्ती है यारो,
तुफानो में ये आसानी से कहाँ संभलती है??
संभल-संभल कर आती है ये समुंदर के किनारे।
तेज़ हवाओं के झोके ही होते,
इसके असली सहारे।
धन्यवाद।