कहते मै अपनी मां जैसी हूं,
पर जाने फिर कुछ लोग मुझे,
मेरे जन्म से पहले ही सुलाना चाहते थे,
कहते थे कि क्या करेगी पैदा होकर,
घर का नाम तो लड़को से चलता है।
अरे सुनों हो मुझे सुलाने वालों,
यही सोचा होता अगर इंदिरा, प्रतिभा, दीपा की मां नें भी,
तो हमें लीडर, महामहिम और उड्डन परी कहा से मिलती।
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हूं मै अभी छोटी सी,
पर क्या पता हो मुझमें भी कोई छिपी प्रतिभा?
है मुझमें भी जिंदा रहने की लालसा ,
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क्यों अपनी एक चाहत के हाथों मुझे मिटानें चले हो,
पर जान लो ओ मिटाने वालो,
आज तो मिटा दोंगे पर,
याद रखना कल तुम जिसे अपने घर लाओगे,
घर की लक्ष्मी बना कर ,
वों भी तो कल को करेगी तुम्हारे घर को उजायारा।
तो फिर मुझ पर ही ये जुल्म क्यों
और अगर करना ही था ये जुल्म तो
क्यों कहा की हुं मैं अपनी मां जैसी?
क्यों नही मैं ‘पा ‘ जैसी?