रुकना नही सीखा उसने ,
कभी नही पीछे किये अपने पांव ,
हर वक़्त हर घड़ी लड़ते गए ,
लेकर हथेलिओं में अपनी जान.
तब तक हारे ही नही,
जब तक उसके अपने थे साथ ,
पर उस दिन जान ही निकल गयी उसकी,
जब खुद अपनों ने किया उसके साथ विश्वासघात.
तब भी वे पीछे नही हटे,
दिल को पत्थर बनाकर दी अपनों को सज़ा,
पर दुःख तो उन्हें इतना हो रहा था,
कि मर जाएंगे वो जिंदा,
पर वो करें भी क्या क्यूँकी उन्हें रहना था जिंदा,
लेकर अपने सैनिकों की टोली चल दिए वो,
सालों से देश द्रोहियों से लड़ते हुए आधे हो गए वो,
तब भी उनका जज्बा लेता था उनकी सलामी,
उस कश्मीरी बर्फ में भी, चलते ही गए वो,
हमारा सीना तो जल रहा है,
बस इसी जज्बे के सहारे जीतते गए वो.
उनके आँखों में खून था, की जितनो को मारें,
वो जिंदा लौटेंगे नही,
उनके सामने जो भी आएगा,
उसे मौत देंगे ही.
अपने मकसद को कामयाब करने के लिए चलते ही गए,
मरना तो सीखा नहीं था, फिर भी वतन के वास्ते मरते गए ,
जी तो चाहता है की फिर से जाएँ अपने घर,
लेकिन, जब ये सोच आई तब अपने देश के लिए खड़े हो गए.
टोली को बनाना काम था एक जवान का,
जो लाख लालचों के बाद भी भूखा था अपने ईमान का ,
वही जवान हमें अपने देश से बचाता है,
कहीं हो ना जाए अपना देश गुलाम बेईमान का .
मुन्नी की याद जब आती है उसे,
तो याद कर लेते हैं उसकी किलकारियां ,
भूलाने के बाद भी उनकी यादें
हर वक्त हर मोड़ में जगा देती हैं तनहाईयाँ .
उसके लिए बंदूके के साथ खेलना,
एक आदत हो गयी है,
परेशानियों में खुद को धकेलना,
उसकी मर्जियां बन गयी है .
एक बेबस सैनिक,
हर पल अपने घरवालों की याद को अपने दिमाग से मिटाता है ,
मिटाने के बाद ही वो जंग में जा पाता है,
यही वो पल है जो इसे मजबूत बनाता है,
इसे मजबूत बनाता है.
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न सार्थक उपाध्याय ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com
Essay likh diya hai lines aur stanza ke roop me..
Bahut badhia poem hai