प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि ईश्वर ने कभी किसी इंसान पशु या पक्षी का साथ नहीं छोड़ा क्योंकि वह तो दुनियाँ के कर्ण कर्ण में वास करते है। ये तो इंसान का मन है जो ईश्वर को समझ नहीं पाता जब पलके आँखों के इतने पास होते हुये भी ये आँखे उन्हें देख नहीं पाती तो ईश्वर जो हमारे अंदर ही है इंसान खुदमे झाँक कर उन्हें कैसे समझेगा। याद रखना दोस्तों ईश्वर की प्राप्ति तन की नहीं मन की आँखों से होती है.ईश्वर को केवल सच्चे और करुणा के भावो से ही जीता जा सकता है। उनका असली रूप केवल प्रेम है इसलिए चाहे हम ईश्वर को भूल जाये लेकिन वो हमारा साथ कभी नहीं छोड़ते और वो हमसे कही बाहर नहीं वो हम सब के अंदर है कभी वक़्त मिले तो आंखे बंद कर उन्हें अपने अंदर ही ढूँढना।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
ये मन ईश्वर से मुँह मोड़ता है।
मगर ईश्वर कभी इस मन का साथ नहीं छोड़ते है।
सबका सहारा बन,वो कभी किसी को,
अंदर से नहीं तोड़ते है।
हमारे अंदर ही रहकर,
वो हर वक़्त हमे सहारा देते है।
हमे समझाते बार-बार,
मगर हमसे वो कभी कुछ नहीं लेते है।
फिर भी ठुकराकर उन्हें,
लोग अक्सर उनसे अपशब्द कह देते है।
हर शब्द में डूबकर भी, वो हमारी बलाये ही लेते है।
हमे संभाल कर, वो अक्सर, हमसे ये कह देते है।
तू मुझे भले ही भुला दे, पर मै तुझे कभी न भुलाऊँगा।
रूठेगा जो ज़रा भी मुझसे, तो प्यार से मैं ही तुझे मनाऊँगा।
दो पल आँखे बंद कर, तू खुदमे मुझको झाँक।
बिना कुछ करे ही जीवन में, तू बस शांति का रास्ता न ताक।
तुझसे कही बहार नहीं, मैं तुझमे ही तो रहता हूँ।
तुझे गलत राह पर जाते देख, मैं अक्सर तुझसे ये कहता हूँ.
तेरा ही किया हर गलत कर्म जब तेरे सामने आयेगा।
मेरी बात देर से समझ, तू फिर बाद में पछतायेगा।
सच्चा मित्र हूँ तेरा मुझे पराया मत समझ,
माया की इस दुनियाँ में मुझे भूल, तू इसमें इतना मत उलझ।
धन्यवाद।