प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को अपनों की परिभाषा समझा रही है वह कहती है कि अपनों का पता दुख में पता चलता है क्योंकि ख़ुशी में तो सब हमारे साथ होते है लेकिन दुख में सिर्फ अपने ही हमे हौसला देते है। वह कहती है किसी के करे को कभी भूलना नहीं चाहिये और जिस व्यक्ति ने तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ा, उसका दिल कभी नहीं दुखाना चाहिये।
कभी -कभी इंसान अपनों को समझ नहीं पाता गुस्से में आकर वह गलत संगती में पड़ जाता है यह सोच कर कि शायद ये मुझे समझता है लेकिन अगर अपनों का दिल दुखाकर तुम दुनियाँ के किसी भी कोने में जाओगे तो तुम्हें सिर्फ दुख ही मिलेगा इसलिए कभी परिस्थिति छोड़ कर मत भागों।रिश्ते अगर सही से निभाने है तो अपनों से मतलब सिर्फ पैसो के लिए मत रखो। सबमें बराबर क्षमता है, कोई किसी से कम नहीं होता। मेहनत की रोटी का सुकून ही अलग होता है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
अपनों का साथ, होता है बड़ा ही सुहाना
अपने में कही रह कर, तुम कभी अपनों को भूल न जाना।
ख़ुशी में देता बस ये साथ ज़माना,
दुखो में होता कर्तव्य, बस अपनों का मरहम लगाना।
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अपने वो नहीं जो बस अपनों में ही रहते है।
किसी पराये के आँसू देख, वो फिर भी चुप रहते है।
हौसला तो पराया भी, अपना बन, दे सकता है।
किसी की सिसकती पीठ को थपथपाने में वक़्त कितना लगता है??
अपना वो नहीं, जो पैसों के लिए अपनों का मान करता है।
न मिलने पर पैसे, तू क्यों अपनों का अपमान करता है।
अपनों तो हर हाल में सिर्फ, हौसला बांधे रखते है।
जीवन के छोटे-मोटे दुखो का स्वाद सब साथ में चखते है।
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अपनों को अपना न समझ, तुम आपस में क्यों लड़ते हो,
दुनियाँ की इस भीड़ में, तुम अपनों से ही क्यों डरते हो??
जब अपनों से ही नहीं बनती, तो दुसरो से कैसे बन पायेगी।
अपने दुखो से जो भागे, उसकी किस्मत हर मोड़ पर, उसे दुख ही दिखायेगी।
धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।