प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि हर इंसान अपने-अपने तरीके से जीता है जैसे किसीको अपने में ही रहना अच्छा लगता है तो किसी को चार लोगो के संग बैठ कर ही मज़ा आता है ये तो अपने अपने विचार है अपना अपना ढंग है जीने का इसमें कोई गलत और कोई सही नहीं होता।
कवियत्री सोचती है हम कभी कभी ये गलती न चाहते हुये भी कर देते है ये सोच कर की जैसी हमारी सोच है वैसे ही दूसरे की भी सोच होगी क्योंकि विपरीत परिस्थिति के रहते एक सोच वाले लोग भी अलग हो जाते है और दुख ही केवल वो क्षण होता है जीवन का जब हमे हमारे अपनों की पहचान होती है लेकिन याद रखना दोस्तों हमारा सच्चा मित्र और कोई नहीं केवल हम ही होते है।याद रखना दोस्तों ये सोच भी गलत है जहाँ हम केवल यही सोचे कि केवल हमारी सोच ही अच्छी है।
अब आप इस कविता का आनंद ले
जहाँ प्यार है ,
वहाँ तकरार की भी गुंजाईश होती है।
अपने को अपना न समझ,
चिंता कर तू क्यों बिन बात पर रोती है??
तू जिधर निगाह घुमाये,
वो हर कोई तो तेरा अपना है।
उन्हें खुश रखना ही तो बस, तेरा अपना सपना है।
बस अपने बारे में ही सोच कर जीवन का मज़ा कहाँ आता नहीं??
व्यस्त मानव ही जीवन में जीवन की ठोकरे खाकर भी नहीं खाता है।
जो समझे तुझे उससे करले बातें चार,
जो न समझे, होंगे उसको भी समझने वाले लाखो हज़ार।
विचारों के मिलन से ही तो,
लोग एक दूसरे को समझ पाते है।
कोई रहते लोगो में,
तो कोई अपने में ही रहकर ज़िन्दगी बिताते है। ,
अकेले में चुपकेसे अपना प्यार वो अपनों को दिखाते है।
अपनों में रहकर भी,
वो अपने को दूसरों से छुपाते है।
दुख की बेला के रहते,
अपने फिर सब साथ में मिल जाते है।
धन्यवाद।