तुमसे जो ऑंखें थी,
वो बस रही है यही.
तुम यु ही ज़िंदा हो ,
इन् लफ़्ज़ों में कही .
होती जो तुमसे थी,
बातें वो ही, तो थी
अब तो किताबों की
कहानियां रह गयी!
वो मेरे रेशों को ,
तुम यु बांध गए हो
लगता कुछ ऐसा है,
की रूह में झाँक गए हो .
मैं खो रहा था जो,
तुम जो पास थे
मस्ती की झूम में,
हर रंग शाम थे.
तुम पिछले हर पहरों के,
साथी बने थे,
जो तू यु मेरे थे
की राही बने थे .
और अब यु घुल के मुझसे,
यु छिन से रहे हो
की ज़िन्दगी के हर रंग से ,
मायूस हो रहे हो.
आओ मिलो ना फिर मुझसे ,
किसी ढलती सी शाम में .
और रंग बिखेरो मुझ पर अपना,
की हो जाऊँ
मीरा का शयाम मैं.
तुमसे जो ऑंखें थी,
वो बस रही है यही.
तुम यु ही ज़िंदा हो,
इन् लफ़्ज़ों में कही.
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न पियूष पांडेय ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी कोई स्टोरी है. तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com