संपूर्ण विश्व में भारत एक ऐसा देश है जिसमें पग-पग पर वेशभूषा और भाषाओं के साथ-साथ रीति-रिवाज भी बदलने लगते हैं और संपूर्ण विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां आस्थाओं के लिए इतनी मान्यता है. उन्ही आस्थाओ में एक तुलसी विवाह भी है. वैसे तो तुलसी विवाह संपूर्ण भारतवर्ष में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है मगर राजस्थान में इस विवाह के लिए एक अलग ही स्थान है.जहां आए दिन बेटियों पर हो रहे अत्याचारों की घटनाएं सामने आती रहती हैं तो वहीं यह आस्था हमें बहुत कुछ सिखा जाती है. राजस्थान के अजमेर जिले के लगभग सभी गांवों में तुलसी को भी एक बेटी का दर्जा दिया जाता है. यहां जिस व्यक्ति की खुद की बेटी नहीं होती वह अपनी आर्थिक स्थिति तथा सामर्थ्य के अनुसार तुलसी को अपनी बेटी मानकर उसका विवाह करता है.
यह विवाह हिंदू धर्म के अनुसार पूरी रीति रिवाजों के अनुसार शालिग्राम के साथ किया जाता है. इस विवाह मे गांव वालों तथा रिश्तेदारों को आमंत्रित किया जाता है तथा उनका आदर सत्कार कर उनको प्रतिभोज भी कराया जाता है और सभी रीति रिवाजों के अनुसार तुलसी की विदाई भी की जाती है.ऐसा नहीं कि जिस की बेटी ना हो केवल वही तुलसी का विवाह को करेगा. अपनी आर्थिक स्थिति तथा सामर्थ्य के अनुसार जिसके बेटी है वह भी इस परंपरा को निभाता है और इतना ही नहीं अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार वह तुलसी विवाह को एक या एक से अधिक बार भी करता है.
इस बार भी तुलसी विवाह महोत्सव पर 3 नवंबर 2017 को अजमेर जिले की तहसील रूपनगढ़ के ग्राम चक पिंगलोद के निवासी श्री मान लालाराम बरडवाल ने तुलसी का विवाह पौराणिक मान्यता/पारम्परीक तरीके से पिंगलोद से ठाकुर जी महाराज(शालिग्राम) के साथ किया. ठाकुर जी महाराज की बारात गाजे बाजे के साथ लालाराम जी बरडवाल के घर पहुची और पूर्ण विधि विधान के साथ तुलसी तथा ठाकुर जी महाराज का विवाह संपन्न हुआ.
यह आस्था संपूर्ण भारत के लिए एक सीख छोड़ जाती है, सीख उन लोगों के लिए जो बेटी पैदा होने पर अफसोस करते हैं, सीख उन लोगों के लिए जो दूसरों की बेटियों को हवस की नजरों से देखते हैं, सीख उन लोगों के लिए जो विवाह में दहेज की मांग करते हैं, सीख उन लोगों के लिए जो एक औरत को औरत नहीं समझते और ना जाने कितनी ऐसी सीखें इस आस्था के जरिए पूरा विश्व पाता है. और यहीं वो आस्थाये हैं जो भारत को भारत बनाए रखती हैं.
[स्रोत- धर्मी चन्द]