बहते हुए से आंसू और रक्त-लिप्त शव
कुछ क्षण की कहानी सुनाते , वे सूखे हुए लव
कायरता की दस्ता कुछ यूँ बयां करते वो पल
जहा नफरत है गहरी समान-इ- समुन्दर का तल.
गणित गहीन गूंजती फिर वह चीखे
आत्मा को झिंझोड़ती दीखे.
बंदूकों की नोक पे, गोलों के शोर में
शवों का तांडव करते, खुद को देश प्रेमी कहते हैं
अरे! ऐसे हृदयो में प्रेम के बोल भी कही बहते हैं?
अपने चिरंतन मन को, जो कही रख भूल आया है
वह मनुष्य नहीं, बरबस पिशाचो का साया है.
अलंकृत है मानव सभ्यता तभी, जब
समझे हम! भलाई हो सबकी , सब से हैं हम.
परिपक्त जीवन, किसी का कोई करना नहीं जनता
परन्तु ये भी सत्य है
मृत्यु का आलिंगन स्वयं कोई करना नहीं चाहता
यदि इतना है प्रेम, तो कुछ ऐसा करो,
भला हो सबका और तुम भी खुश रहो.
भयावह सत्य है ये युग का
की जुल्म करने और निरीह का मारक
उस यातना को स्वयं भी भोगता है.
ए मुर्ख, तू फिर क्यों? किसी और के स्वार्थ में
खुद को ढूंढता हैl
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न नमिता कौशिक ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com