प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि ज़रा वक़्त निकाल कर ईश्वर की दी हुई किताबो को पढ़ो और जानो की वो हमसे क्या चाहते है? कवियत्री सोचती है जब-जब भगवान धरती पर मानव रूप में आये तब-तब उन्होंने मानव कल्याण के लिए बहुत कष्ट सहा चाहे बुद्धा हो, जीसस हो राम हो वाहे गुरु हो या अल्लाह ये सब हमे मानवता का पाठ पढ़ाने आये थे फिर चाहे उन्होंने कितने दुख खुद झेले लेकिन कभी गलत का साथ नहीं दिया।
कवियत्री सोचती है हम हमेशा अपने छोटे-छोटे दुखो को लेकर ईश्वर के सामने रोते रहते है लेकिन ईश्वर को समझने वाले और उनके दुखो को समझ कर रोने वाले लोग बहुत ही कम है। याद रखना दोस्तों पैसो से ईश्वर की बड़ी मूर्ति तो खरीद लोगे। लेकिन ईश्वर की प्राप्ति अच्छे कर्मो से ही होती है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
सब अपने लिए ईश्वर के आगे रोते है,
मगर ईश्वर के लिए कोई नहीं रोता।
कोई उनकी दी किताबो को पढ़, उनमे नहीं खोता,
जो खोता वो बात-बात पर ईश्वर के आगे नहीं रोता।
ईश्वर भी तो मानव के रूप में इस दुनियाँ में आये थे।
अपने अच्छे कर्मो द्वारा ही,
उन्होंने सबके घरो में खुशियों के दीप जलाये थे।
आज वो किताबे पढ़, तुम भी तो उन जैसे बन सकते हो।
आईने में देखो खुदको ,
तुम भी तो मानव रूप में उन जैसे ही तो लगते हो।
अपनी समझ से तुम भी तो उनकी दी किताबे पढ़ सकते हो।
दूसरे पर न निर्भर हो,तुम भी तो ,
खुदके दम पर अपने दुखो से लड़ सकते हो??
सबको अपना सच पता होता है।
खुदको सुधारने के बजाये,तू क्यों ईश्वर के सामने रोता है??
सुधार कर ही खुदको उनकी सही छवि दिखती है।
वैसे तो करोड़ो मूर्तिया है उनकी, जो बज़ारो में यूही बिकती है।
धन्यवाद।