स्वानंद जनकल्याण प्रतिष्ठान की और से स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मृती व्याख्यानमाला का आयोजन

पुणे के स्वानंद जनकल्याण प्रतिष्ठाण की और स्वतंत्र्यवीर सावरकर स्मुर्ती व्याख्यानमाला का आयोजन किया था । ये व्याख्यानमाला का 8 वा साल था । ये व्याख्यानमाला 1 फरवरी से 4 फरवरी तक पुणे में सिंहगड रोड के आनंद नगर में भाजी मंडई के सामने मैदान में होगा ।

स्वतंत्र्यवीर सावरकर स्मुर्ती व्याख्यानमाला

हर दिन यहां अलग अलग प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन किया है । ये बात हमें विश्वकर्मा मॉड्यूलर फर्निचर के कालिदास सोनवणे ( भारतीय जनता पार्टी कारागीर सेल पुणे जिल्हा ) इन्होने बातयी इसमें शहाजी गीते, रवींद्र सुतार, दिलीप दीक्षित, नितीन बीचकुले ये समाजसेवक हमेंसा उनके साथ रहते है ।

कार्यक्रम का आयोजन इस प्रकार है ।

  • 1 फरवरी 2018 को मा. श्री. विक्रम गोखले की मुलाकात होगी
  • 2 फरवरी 2018 को शेखर धर्माधीकरी की विज्ञान पर्यावरण और गाय
  • 3 फरवरी 2018 को योगेश सोमण स्वतंत्र्यवीर सावरकर एकपत्रि प्रयोग
  • 4 फरवरी 2018 को राहुल सोलापूरकर राजश्री शाहू महाराज

इन सभी विषय पर हमें उनके विचार को सुनने का मौका मिलेगा । ये विषय सभी सामाजिक होने के कारन समाज मै उनके विचार प्रेरित होकार नव युवा को मन में चेतना निर्माण होगी । और समाज को उनके जीवन का परिचय होगा । आज हमारे समाज में जाती की तेढ निर्माण हो रही ही । समाज जाती के अनुसार बट रहा है । और उसका ज्यादा फायदा हमारे राजकीय नेता ले रहे है ।

विनायक दामोदर सावरकर को स्वातंत्र्यवीर नाम से भी जाना जाता था । उनका जन्म 28 मई 1883 नाशिक जिला के भागूर गाव में हुआ । वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे 1904 में उन्हॊंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की उन्हें कालापानी की सजा हो गयी । और उन्हें सेलुलर जेल भेजा गया । उस जेल में अथक परिश्रम करना पडता था ।

कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता । उन्होंने तिरंगा के बीच धर्म चक्र लगाने ने का सबसे पहले प्रस्ताव दिया था । और उसे राष्ट्रपती राजेंद्र प्रसाद ने मनाभी था ।

[स्रोत- बाळू राऊत]

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