प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री भावुक मन से अपने बीते कल का वर्णन कर रही है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
जीवन कैसे रेत की तरह, हाथों से निकल जाता है।
बीते हर पल में ज़िंदगानी,ये बात, ये हर किसी को बताता है।
उठाके देखती हूँ आज, तस्वीरें वो पुरानी,
एहसास करती हूँ, हर पल में खत्म हो रही है, हम सब की ज़िंदगानी।
कल ही तो जैसे मैं इस दुनियाँ में आई थी.
कल ही तो, उस पहले कदम की ठोकर, मैंने खाई थी।
स्कूल के बस्ते का बोझ, मैं उठा नहीं पाती थी।
रिक्शा में अपने दोस्तों को, चुटकुले मैं सुनाती थी।
थक हार कर फिर पूरे दिन की कहानी, मैं माँ को सुनाती थी।
क्या बात करने बैठते और बातें कहाँ तक निकल जाती थी।
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बातो ही बातो में अपनी शैतानियों के पकड़े जाने पर, फिर डाट भी मै ही खाती थी।
मेक-अप करके,खूबसूरत बन, फिर अपनी गुड़ियाँ को भी सजाती थी।
अपने में मद मस्त रहकर, मैं लोगो के दरवाज़ों की कुंडी खटखटाकर भागती थी।
भूतो वाले सीरियल देख, फिर रातो में डर से जागती थी।
फिर दीदी के, तकिये के नीचे, रख कर हाथ, वो डर भाग जाता था।
मेरी इस हरकत को देख, फिर दीदी को गुस्सा आता था।
सुबह बिना नहाये, फिर मै ही तो बाथरूम से निकलती थी।
डाट खाकर मम्मी से, फिर जा कर सभलती थी।
बिना नहाये, ईश्वर को दिया जलाकर पटाती थी।
अपनी मन की बाते मैं शुरू से ही अपने ईश्वर को बताती थी।
मैली रहती भलेही तन से,मगर साफ़ रहती मन से।
शरारती थी भले ही,लेकिन प्यार करती हर जीव को मन से।
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ऐसा नहीं की मुझे कुछ याद नहीं,
आज भी इतिहास, मेरे सामने, किसी मूवी की तरह चल जाता है।
हर पल में बदले ये दुनियाँ, हर क्षण का किस्सा ये मुझे सुनाता है।
नाचू जो आज भी, तो वो छोटी सी प्रेरणा मुझे देख, मेरे मन ही मन में मुस्कुराती है।
गाने जो बैठू, तो मेरे संग वो भी पुरानी यादों के गीत गुन-गुनाती है।
इतना बड़ा परिवर्तन कैसे इस प्रेरणा में आया है।
उस चुलबुली लड़की को कैसे किस्मत ने एक कवियत्री बनाया है।
देखे है उसने इस दुनियाँ के बहुत से रंग,
होते है लोगो के अपने-अपने जीने के अलग ही ढंग।
बुद्धा की कथा सुन, प्रेरणा का दिल उन पर आ गया।
उनकी दिवानी बन,शांति का रास्ता फिर इस कवियत्री के मन को भागया।
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अब एक ही लक्ष्य है जीवन का,
लोगों को शांति का रास्ता,अपनी कविता द्वारा समझाऊ।
सबका हौसला बनू, बस किसी पर बोझ न बन जाऊ।
धन्यवाद