प्रस्तुत पंक्तियों में कवयत्री समाज को पुरषों का दर्द बता रही है वह सोचती है कि जीवन में ऐसे बहुत से ख़ुशी के पल होते है जिसका आनंद पुरुष नहीं ले पाते क्योंकि अपनों के सपने पूरे करने में वह अपना पूरा जीवन गुज़ार देते हैं।
ऐसा नहीं है कि उन्हें दर्द नहीं होता वह भी जीवन के कई पड़ाव पर कमज़ोर पड़ जाते है, उनके दु:ख का प्रभाव उनके अपनों पर न पढ़े, इसलिए अक्सर वो अपने आँसू छुपा लेते है और कही अकेले में जाकर रोते है उनका भी मन करता है कि वो अपने बच्चो संग अपना दिन बिताये लेकिन काम के दबाव में आके वह कही अपने में ही रहते है और उनका जीवन यूँ ही निकल जाता हैं।
अब आप इस कविता के ज़रिये पुरुषों की पीड़ा को समझे।
मर्द को भी दर्द होता है।
सबके सामने नहीं,
अकेले में कही वो भी अक्सर रोता है।
किसी से कुछ कहता नहीं,
क्योंकि अपनों को देख उदास उसे भी दु:ख होता है।
मर्द को भी दर्द होता है।
घर बना कर भी,
वो कहाँ चैन की नींद सोता है।
अपनी जिम्मेदारियों को समेटने में,
न जाने कितने ख़ुशी के पल वो खोता है.
अपने हालातो पर,
दु:ख तो उसे भी होता है।
मर्द को भी दर्द होता है।
अपने में ही रह कर कही,
उसको कहाँ किसी से मतलब होता है।
अपनों को न मिले पीड़ा,
इसलिए जीवन के न जाने,
अपने कितने सुख वो खोता है।
मर्द को भी दर्द होता है,
उसकी गोदी में सर रखकर,
कहाँ उसका बच्चा रोता है।
अपने बच्चे के लिए,
उसके पास कहाँ ज़्यादा वक़्त होता है।
ऐसा नहीं वो अपनों के साथ वक़्त गुज़ारना नहीं चाहता,
अपनों की ख्वाहिशों को पूरा करने में,
उसका मन तो कही और ही लग जाता।
इसलिए अपनों को वो कम वक़्त ही दे पाता।
मर्द को भी दर्द होता है।
मर्द को भी दर्द होता है।
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न प्रेरणा महरोत्रा गुप्ता ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी है कोई स्टोरी तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com.
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