भारत के विभिन्न राज्यो के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालो मे लगातार हो रही आग दुर्घटनाओ से अभी तक कई लोगो की मौत हो चुकी है जबकि इससे कई लोग आग द्रारा ऐसे झुलस चुके है जिससे उनका जीवन मौत के समान बन चुका है. लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर में आग लगने से जब 8 लोगो की मृत्यु हुई तब प्रशासन की नींद खुली और सरकार फौरन हरकत मे आई और मुख्मंत्री ने जांच के आदेश दिए.
अस्पतालो मे बार-बार आग लगना सरकार की लापरवाही का संकेत तो देती है लेकिन नेताओं की बयानबाजी और शोर-शराबे के बीच यह लापरवाही किसी कोने मे चली जाती है. ऐसा ही एक हादसा पिछले साल उड़ीसा के सम अस्पताल मे हुआ जहां पर आग लगने के कारण 19 लोगो की मौत हो गई जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए. यह अब तक का सबसे बड़ा हादसा था. बार-बार राज्य के किसी भी अस्पताल मे आग लगना यह साबित करता है कि वहाँ का स्वास्थय ढाँचा किस प्रकार लड़खड़ा गया है.
ऐसे मे जब अस्पतालो मे आग लगने के इतने हादसे सामने आ रहे है तब राजधानी मे सिर्फ 67 अस्पताल ऐसे है जिनके पास दिल्ली अग्निशमन विभाग की एनओसी है. दिल्ली मे चार ऐसे सरकारी और 600 प्राईवेट अस्पताल ऐसे है जो आग से सुरक्षित नही है अथवा उनके पास पर्याप्त संसाधन मौजूद नही है. ऐसे मे अस्पतालो मे इलाज करा रहे मरीजो को किसके जिम्मे सौंपा जाए जो हमे भरोसा दिला सके कि आग लगने के दौरान किसी भी व्यक्ति को कोई क्षति नही पहुँचेगी.
दरअसल, दिल्ली सरकार का अग्निशमन विभाग अस्पतालो को एनओसी प्रदान करता है जिसका साफ मतलब निकलता है कि अस्पताल मे आग लगने के दौरान वह ऐसी परिस्थति मे होगा जिससे वो अपनी मदद से किसी भी व्यक्ति को क्षति नही होने देगा.
एनओसी के लिए दमकल विभाग मानक तय करता है. नियम यह कहता है कि नौ मीटर से ऊंचे अस्पताल में दो मीटर चौड़ी सीढ़ी और ढाई मीटर चौड़ा कॉरिडोर होना चाहिए. लेकिन कई अस्पताल तो ऐसे है जो किसी एक बिल्डिंग को पुनर्निमाण कर बनाया गया है. ऐसे अस्पतालो को हम निजी छोटे-बड़े अस्पतालो की सूची मे लाते है. वहाँ पर इलाज करा रहे मरीजो के लिए किस प्रकार की सुविधाँए है.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अस्पतालो मे आग लगने का क्या कारण है. अलग-अलग राज्य मे होने वाली आगजनी का कारण हमेशा शॉर्ट-सर्किट ही बताया जाता है. जो एक सबसे बड़ा और मुख्य कारण भी माना गया है. आखिर ऐसे लगी आग से जानमाल के भारी नुकसान को हर बार शॉर्ट सर्किट की दलील से कब तक ढका जाता रहेगा. शॉर्ट सर्किट से लगी आग क्या बिल्कुल रोकी न जा सकने लायक होती है या फिर ऐसा होने पर आग फैलने के बचाव के इंतजाम नहीं किए जा सकते. इसका जवाब देना अस्पताल प्रशासन का उत्तरदायित्व होगा. एक तरफ तो अस्पताल लोगो से इतनी मोटी फीस को वसूलते है और कोई भी आपातकालीन व्यवस्था नही करते तो एसे मे वहाँ इलाज करा रहे मरीजो की जान सिर्फ भगवान भरोसे है.
सरकार को भी अपनी तरफ से सरकारी और प्राइवेट अस्पतालो मे सख्त कार्यवाई की जरूरत है. सरकार को स्वास्थय अधिकारियो द्रारा अपने राज्य मे बने सरकारी और प्राइवेट दोनो मे औचक निरिक्षण करने की जरूरत है. लेकिन सरकार को इस कदम के लिए सख्त आदेश देने की जरूरत है तभी यह काम हो पाएगा.
अंत मे अस्पतालो मे लगातार आग लगने वाली घटनाओ से यही कहना होगा कि देर आए दुरुस्त आए वाली स्थिति हमे कही भी नज़र नही आ रही है. हमे हमेशा सरकार द्रारा दिलासा दे दिया जाता है कि आगे इससे निपटने को हम कड़े इंतजाम करेगे लेकिन फिर भी हमे केवल वही निराशा से ही अपने को संभालना पड़ता है.