प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि ज़रूरी नहीं कि जो मानव बहुत ज़्यादा पूजा पाठ करता हो बस वही इंसान अच्छा है क्योंकि अच्छाई और बुराई हर इंसान में होती है. कवियत्री सोचती है इंसान की सोच अच्छी होनी चाहिये।
धर्म की राह में लोग अक्सर कुछ गलतियाँ कर देते है जिसका उन्हें खुद पता नहीं चलता जैसे दूसरे के धर्म के खिलाफ गलत धारणा रखना, दूसरे के पूजा करने के तरीके को गलत कहना, क्योंकि हर इंसान अलग है अनोखा है वो अपनी क्षमता के हिसाब से ईश्वर को समझता है.हर एक इंसान की सोच एक सी नहीं होती और हम ही तो कभी गुस्सा करते है, कभी-कभी अपने वातावरण में हमे कभी सब कुछ बुरा लगता है तो कभी हम ही अच्छी और समझदारी की बातें करते है। हमारे विचार पल-पल में बदलते रहते है।इसलिए बिना अनुभव करे किसी के लिए गलत धारणा न बनाना। याद रखना इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
पूजा करने वाला हर इंसान सच्चा नहीं होता।
पूजा न कर भी, जो बस उनका ध्यान कर ही सोता।
जीवन की कठिन से कठिन परीक्षा में भी,
वो अपनी सुध-बुद्ध न खोता।
ईश्वर नहीं सिर्फ एक के, वो तो है हम सबके।
भिन-भिन शरीरो में बटे, बच्चे है हम सबतो उस रब के।
उनके प्रति अपनी आस्था, लोग कई तरीके से दिखाते है।
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व्रत करना, दिये जलाना,श्लोक पढ़ना,
तो कोई ध्यान कर उन्हें सुन पाते है।
अपने-अपने हिस्से की ठोकरें तो सब ही इस दुनियाँ में खाते है।
अपने अच्छे कर्मो द्वारा ही, लोग अपनी किस्मत को जगाते है।
ईश्वर ने कभी ये तो नहीं कहा,मेरी पूजा कर तुम मुझे मनाओ।
रखो खुदपर नियंत्रण, अपनी सफलता से तुम दूसरे को भी राह दिखाओ।
ईश्वर, अल्हा, वाहेगुरु, बुद्धा, यीशु आदि
सब हमसे एक ही बात तो कहते है।
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तो फिर क्यों खुदके विचारो को ऊंचा समझ,
अलग अलग मज़हब के लोग मिलजुल कर नहीं रहते है??
अच्छाई है अगर हर धर्म में, तो बुराई भी उससे परे नहीं।
समझे जो इस बात की गहराई को,
ईश्वर की नज़रो में, सच्चा मानव तो बस है वही।
धन्यवाद