किसी भी महिला की जिंदगी में मां बनने से अधिक सुखद कुछ और नहीं होता। मां बनने के बाद ही एक महिला पूर्ण मानी जाती है। गर्भवती होने से लेकर बच्चे के जन्म तक का समय मां और शिशु दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, यह वह समय होता है जब गर्भवती महिला को अपना विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि मां की गतिविधियों का सीधा संबंध गर्भ में पल रहे शिशु से होता है, ऐसे में गर्भवती महिला को हमेशा प्रसन्न रहने की कोशिश करनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान शारीरिक व मानसिक अनेक बदलाव होते हैं, जिसमें किन्ही कारणों से कुछ महिलायें अवसाद का शिकार भी हो जाती हैं और अवसाद से बाहर निकलने के लिए वह एंटी डिप्रेशन दवाओं का इस्तेमाल करती हैंं जो कि गर्भवती महिला के साथ साथ गर्भ में पल रहे शिशु के मस्तिष्क विकास के लिए बहुत ही हानिकारक होती हैं।
नेशनल सेंटर फॉर रजिस्टर बेस्ट रिसर्च में हुआ खुलासा
शोधकर्ताओं ने प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन की दवा का इस्तेमाल करने पर हाल ही में एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें बताया गया है कि प्रेगनेंसी के दौरान एंटी डिप्रेशन की दवा लेने पर बच्चों में ऑटिज्म का खतरा बढ़ जाता है। इतना ही नहीं ऐसी स्थिति में बच्चे के बर्थ डिफेक्ट के साथ पैदा होने की आशंका भी ज्यादा बढ़ जाती है।
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यह अध्ययन बहुत बड़े स्तर पर किया गया था जिसमें लगभग 9 लाख बच्चों को सम्मिलित किया गया और इन बच्चों में अधिकतर वह बच्चे थे जिनकी मां ने गर्भावस्था में एंटी डिप्रेशन की खुराक ली थी। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि ऐसे बच्चों में फैसले लेने की क्षमता उन बच्चों के मुकाबले कम होती है जिनकी मां ने गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन की दवा नहीं ली है।
डिप्रेशन में जाने से बचे
डिप्रेशन बेशक सुनने में एक आसान शब्द लगता हो लेकिन यह उतना ही खतरनाक है, अगर इस समस्या का सही समय पर इलाज नहीं किया जाए तो यह भयंकर रूप भी ले सकता है। डिप्रेशन एक मानसिक स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति की सभी इच्छाएं खत्म हो जाती है यहां तक कि उसके अंदर जीने की चाह भी खत्म हो जाती है, ऐसे में अगर गर्भवती महिला डिप्रेशन का शिकार हो जाती है तो वह मां के साथ साथ बच्चे के लिए भी खतरा बन जाता है।
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सबसे पहले तो कोशिश यह करें कि कोई भी गर्भवती महिला डिप्रेशन में ना पहुंचे, उसके बावजूद भी कोई गर्भवती महिला अगर डिप्रेशन में चली जाती है तो उसे कभी अकेला ना छोड़ें, जल्दी से जल्दी मनोचिकित्सक से संपर्क करें। योग और मैडिटेशन का सहारा लें तथा संतुलित आहार ग्रहण करें। मन में सकारात्मक विचार उत्पन्न करने वाली किताबें पढ़े।