याद है वो रंगीला बचपन
हर चीज़ से करते शरारत पलपल,
कोई चिंता नहीं थी ना किसी का ध्यान,
जो करना वो करते थे वो सरेआम,
याद है वो कांच की गोलिया,
खेलना बना बना टोलिया,
में एकम में दूज में तीज सब रहे थे सीख,
ऐसे ही सबक जिंदगी का तुमने भी तो सीखा होगा,
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याद है वो बचपन की बारिश,
बारिश के बाद कितनी उमस आई होगी,
घमोरीआं हुई तो माँ ने जबरदस्ती नहाई कराई होगी,
नाव बनाकर कागज की कभी तुमने भी तो उस बारिश में चलाई होगी,
याद है वो हसीन पल,
मन ना करे करने को पढ़ाई,
हर समय खेलने की चाहत दिल में समाई,
ना मालूम कितनी बार पड़ोसियों की “डोर बैल्ल” तुमने भी तो बजाई होगी,
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याद है वो लड़ना झगड़ना,
में नहीं खेलूंगा “हितेश” से क्यूंकि हो गई हमारी लड़ाई,
मोहल्ले को सिर पे उठा लिया कर के लड़ाई भिड़ाई,
सुबह लड़ना फिर शाम को इक दूजे की हां में हां कभी तुमने भी तो जताई होगी,
याद है वो खेलना संग-संग,
दूर तक भागना जब कटती कोई पतंग,
उसको पाने की दिल में उठती तीव्र तरंग,
कट कर कोई पतंग कभी तुम्हारी छत पर भी तो आई होगी,
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याद आती है वो मौज-मस्ती,
आज मिले ना किसी को वो महँगी ना सस्ती,
क्यूंकि हर कोई है व्यस्त,
बसाने में अपनी जिम्मेदारिओं की बस्ती,
हितेश वर्मा, जय हिन्द
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Very good
Nice memories of childhood
Nice
very very nice poem
veeerrry nic verma g
Very nice memories of childhood
Nice lines