प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को सावन के पर्व- हरियाली तीज की सुभकामनाये दे रही है। वह कहती है कि इस पर्व पर सब मिलकर खुशियाँ मनाओ झूले लगाओ, अपनों के संग बैठ प्यार भरे गीत गुनगुनाओ। वैसे तो हर पर्व में ही दिल ख़ुशी से झूम उठता है लेकिन क्योंकि तीज सावन में होती है तो इस पर्व में मानों जैसे प्रकृति भी ख़ुशी से नाच रही हो.
कभी ठंडी हवा के झोके तो कभी बारिश की वो सोंधी सोंधी खुशबू सबका मन ही मोह लेती है, ऐसे मौसम को खिलखिलाता देख मानों लगता है जैसे वक़्त थम जाये और इस मौसम का मज़ा हम थोड़ा और ले पाये। महसूस करो तो इन बूँदों में ख़ुशी की झलक नज़र आयेगी, न समझे इनकी गहराई को तो यही बारिश किसी के लिए मुसीबत बन जायेगी। बस अपने-अपने लेने का तरीका है। याद रखना अच्छी सोच में ही सुकून है।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
इस सावन आये,
सबके घर में रिमझिम बारिश की बौछार,
मद-मस्त हो उठे, सबका आँगन,
मिलकर मनाये सब ऐसे ये त्यौहार।
ठंडी हवा के झोके,
सबका दिल बहलाये।
चाह कर भी उस रंगीन वादियों को,
फिर कोई भूल न पाये।
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हरियाली तीज के उत्सव को,
सब मिलकर ऐसे मनाओ।
झूला लगा के एक तरफ,
दूजी ओर गुजिया तुम पकाओ।
एक साथ अपनों संग बैठ,
आज बाते करलो चार.
बिछड़ो को भी मिलाता,
ऐसा मस्ती भरा है ये त्यौहार।
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खोकर खुदमे मस्ती करके,
करलो इन बूँदों से तुम भी आँखे चार।
इन्द्र धनुष भी लहराये ,
पानी में झलके जैसे रंगीन बिजली का हार।
ये ठंडी हवाये,
होश मेरा उड़ाती है।
मुझसे बतिया कर,
मेरा हाले दिल, ये मुझे ही सुनाती है।
मेरे मन की ख़ुशी,
इन हवाओं में कैसे दिखती है?
अपनी ख़ुशी इन हवाओं की तेज़ी में देख,
ये कवियत्री आज इस त्यौहार पर,
सावन के ऊपर लिखती है।