दिल के किसी छोर पे
मैं दस्तक दे रहा हूँ तुझे,
तू कह-कहे में गुम है
मैं वहीँ ढूँढ रहा हूँ तुझे.
तेरे दिल की महफ़िल में
मैंने लिखे हैं, अफ़साने कई,
जो देखी है ज़िन्दगी
देखे हैं बहाने कई.
हाँ, दिल के किसी छोर पे
मैं दस्तक दे रहा हूँ तुझे
कभी खोई सी मंज़िल में
पाया था, तुझे उन् शामों में,
जो जिद्दो-ज़हद थी मेरी
उसे खोया था मैंने उन्ही राहों में.
जो नकाब के अल्फ़ाज़ थे
वो खामोश से कहते थे मुझसे,
मैं रहूं की नहीं
वो बहते रहते थे मुझमे.
मेरी कहानी की किताब
मैंने जलाई थी वहीँ
जहाँ सुने थे तेरे अफ़साने
मैं ठहर गया वहीँ.
दिल के उसी छोर पे
मैं दस्तक दे रहा हूँ तुझे.
ये गुम सी जो सरसराहट है
वो मेरी है, याद है ना?
वो नम सी जो मुस्कराहट है
मेरी है, याद है ना.
जो मंजिल की वफ़ाएँ हैं
मेरी हैं,याद हैं ना,
जो पल पल की नुमाइश है
वो मेरी है,याद है ना.
हाँ, दिल के उसी छोर पे
मैं दस्तक दे रहा हूँ तुझे,
तू कह-कहे में गुम है
मैं वहीँ ढूँढ रहा हूँ तुझे.
विशेष:- ये पोस्ट इंटर्न पियूष पांडेय ने शेयर की है जिन्होंने Phirbhi.in पर “फिरभी लिख लो प्रतियोगिता” में हिस्सा लिया है, अगर आपके पास भी कोई स्टोरी है. तो इस मेल आईडी पर भेजे: phirbhistory@gmail.com