प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज के युवक से प्रार्थना कर रही है कि वह खुदको वक़्त रहते संभाले, क्योंकि कही ऐसा न हो बहुत देरी हो जाये । हम जो भी करेंगे वो कल हमारे सामने आयेगा ही आयेगा। जैसे कि गलत भोजन का सेवन कर हम ये नहीं सोच सकते हमे कुछ नहीं होगा। हर चीज़ अगर लिमिट में खाई जाये तो वो बुरी नहीं होती, हमे अगर किसी चीज़ की लत लगानी ही है तो हमे अच्छाई की लत लगानी चाहिये, जिससे हमारे अलावा दूसरो का भी भला हो।
युवकों को ये समझना होगा आज वो जैसा व्यवहार अपने माता पिता के साथ करते है, कल वो भी बूढ़े होँगे किसी अपने को कभी असहाये न छोड़े, अपनों की मदत के लिए हमेशा आगे रहे। कभी-कभी किसी की बात हमे बुरी लगती है, लेकिन अगर खुदको शांत कर हम अपनी गलती मान ले, या अगर हमने गलती नहीं भी करी है तो शांति से अपनी बात रखकर बात सुलझ सकती है। दोस्तों यहाँ सिर्फ यादे रह जायेंगी, क्योंकि हम यहाँ न कुछ लेकर आये थे और न ही कुछ लेकर जायेंगे।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
ऐ मेरे वतन के जवानों ,
बुढ़ापा तो तुम्हें भी आयेगा।
तुम्हारे हुस्न पर भी,
झुर्रियों का पर्दा छायेगा।
याद रखना तुम्हारा आज,
कल बीता कल बन कर ,
तुम्हारे सामने ज़रूर आयेगा।
ऐ मेरे वतन के जवानों,
बीमारियों की चपेट में,
तुम्हारा शरीर भी ढीला पड़ जायेगा।
अपने आज के भोजन पर जो न लगाई लगाम,
इस रचना में छुपे ज्ञान का सच,
फिर प्रकट होकर आयेगा।
ऐ मेरे वतन के जवानों,
रिश्तों को संभालना भी एक कला हैं.
जो हमारे बड़ो को बखूबी आती है।
एक-एक रिश्ते को संभाले रखने में,
लोगों की आधी उम्र निकल जाती है।
वक़्त रहते सीख लो रिश्तों को सही तरीके से निभाना,
रह जायेगा यही सब कुछ,
किसीको यहाँ कुछ लेकर नहीं जाना।
ऐ मेरे वतन के जवानों,
शराब के नशे में गलत राह पर निकल न जाना।
अपनी इज़्ज़त की फ़िक्र नहीं,
अपने माता-पिता की इज़्ज़त को मिट्टी में न मिलाना।
धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।