राजस्थान की धरा पर नवयुवकों की टीम ने वीर तेजाजी के आदर्शों पर चलते हुए इस वर्ष जुलाई-अगस्त माह में एक अभियान चलाया जिसका नाम रखा गया “शहीदों के सम्मान में, वीर तेजाजी भक्त मैदान में”राजनीति से कोसों दूर रहने वाले युवाओं ने निस्वार्थ भाव से पूरे 5 महीने शहीदों के नाम कर दिए. निजी जीवन के सभी कार्यों को प्राथमिकता से हटाते हुए अभियान चलाया और अभियान के अंतर्गत 7800 किलोमीटर सड़क यात्रा की गयी और तेजाजी भक्त शहीद परिवारों से मिले. आगे की तैयारी के लिए रातभर जागते भी रहे तब जाकर राजस्थान कि वीर प्रसूता धरा पर वीर तेजाजी के युवा भक्तों को ऐतिहासिक अभियान “शहीदों के सम्मान में, वीर तेजाजी भक्त मैदान में” को सफलता पूर्वक संचालित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इस अभियान के सार के तौर पर एक पुस्तक का प्रकाशन हुआ जिसका नाम “वीर तेजाजी विशेषांक” है जिसका विमोचन 10 नवम्बर 2017 को सुबह 10 बजे से “कर्नल डिफेंस एकेडमी, कुचामनसिटी” में सीकर सांसद स्वामी सुमेधानन्द जी सरस्वती के कर-कमलों से किया जाएगा। कार्यक्रम के आयोजक और इस सम्पूर्ण अभियान के प्रेरणास्त्रोत कर्नल श्री नन्दकिशोर जी ढाका है जिनके दिशा निर्देशन में तेजाजी के युवा भक्त कार्यक्रम की जोर शोर से तैयारी करने में जुटे हुए है।
सभी देशभक्त नागरिकों से इस पुस्तक के प्रधान संपादक विश्वेन्द्र चौधरी ने विनम्र अपील की है कि जिस तरह एक सैनिक सवा सौ करोड़ देशवासियों की रक्षा की खातिर अपने आपको हंसते हंसते न्यौछावर कर देता है. उसी प्रकार सभी एक शीद के की खुशहाली से जुड़ी भावनाओं की कद्र करते हुए उनकी शहादत को सम्मान देने के उद्देश्य से 10 नवम्बर को सुबह 10 बजे अधिक से अधिक संख्या में “कर्नल डिफेंस एकेडमी, कुचामनसिटी” पधारे और रणबाँकुरों की वीरता, अदम्य साहस और उच्च कोटि की कर्तव्यपरायणता को सलाम करें।
वीर तेजाजी का जीवन परिचय
वीर तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खड़नाल गांव के एक जाट घराने में हुआ था और 29 जनवरी 1074 यथा माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 को जन्मे तेजाजी के पिता गांव के मुखिया थे. तेजाजी जी का विवाह बाल्यवस्था में पनेर गांव पेमल से कर दिया गया था. पेमल के पिता का नाम रायमल्जी था मगर विवाह के कुछ समय बाद ही पेमल के मामा था तेजाजी के पिता की बीच मन मुटाव के कारण लड़ाई हो गयी और पेमल के मामा की मृत्यु हो गयी.
जब तेजाजी बाल्यावस्था को त्याग बड़े हुए और उनको तानो के रूप में इस बात का पता लगा तो वह अपनी पत्नी को लेने पनेर निकल पड़े मगर रस्ते में एक सांप को जलता देख उसे बचा लिया. मगर सांप अपने साथी को खोकर इतना गुस्सा हुआ कि तेजाजी को डसने लगा. इस पर तेजाजी ने सांप को वचन दिया कि जब वह पनेर से लौटेंगे तब उनको डस लेना और पनेर चले गए.
पनेर में किसी अज्ञानतावश उनकी ससुराल पक्ष से मतभेद हो गया और वह घर लौटने लगे मगर रस्ते में
पेमल की सहेली लाछा गूजरी के घर उनकी मुलाकात पेमल से हुई उसी दौरान लाछा गूजरी की गायों को लुटेरे लूट ले गए और उन लूटेरो से संघर्ष करते समय तेजाजी पूर्ण रूप से घायल हो गए और वचनबद्ध होने के कारण वह उस सांप के पास पहुंचे तथा सम्पूर्ण शरीर घायल होने के कारण तेजाजी ने उस सांप से अपनी जीभ पर कटवाया और इस प्रकार तेजाजी की मृत्यु 28 अगस्त 1103 यथा भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 हुई उन्ही के साथ पेमल ने अपनी भी अपने प्राण त्याग दिए.
आज भी नागौर में तेजाजी के निर्वाण दिवस को भाद्रपद शुक्ल दशमी में प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है।
[स्रोत- धर्मी चन्द]