इश्क़

पूछा मुझसे ईक दिन किसी राहगीर ने
ये इश्क़ क्या बला है बता दे मुझको मेरे वीर रे
सुना है कि यह कोमल है पर कठोर निष्ठुर भी है
जो दिल को जाता है चीर रे

मिश्री से भी मीठा है बहुत स्वाद इसका
जो चख ले ईक बार वो भूल जाता है खीर रे
मिलती नही मुहब्बत किसी को
हर आशिक की आँखों से बहता बहुत नीर रे

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तड़पता रहता है हर कोई क्योँकि
दिल पे चलते जुदाई के ख़ंज़र और तीर रे
भटकता रहता है हर आशिक ईक अंजान से
वीराने मैं जैसे हो भयानक जंगल गीर रे

अपने प्रियतम से मिलने की ज्वाला हर
समय धदकती रहती है सीने में खो जाता है धीर रे
लग जाए जिसको यह बीमारी बड़ा असहाय होता है वो
फिर ना ईलाज उसका कर सके कोई साहब मीर रे

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पाकर इश्क़ को क्यों हर प्रेमी रांझा बन जाता है
और क्यों हर प्रेमिका बन जाती है हीर रे
पूछा मुझसे ईक दिन किसी राहगीर ने
ये इश्क़ क्या बला है बता दे मुझको मेरे वीर रे
ये इश्क़ क्या बला है बता दे मुझको मेरे वीर रे

हितेश वर्मा, जयहिन्द

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