प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री अच्छाई और बुराई का वर्णन कर रही है। वह कहती है कि अच्छाई तब तक ही अच्छी है जब तक उसमे ढोंग का पर्दा न हो और बुराई सिर्फ तभी ही बुरी है जिसमे बहुतो का नुक्सान हो। कहने का मतलब है कि अच्छाई की राह में अच्छे बनकर ढोंग मत करो क्योंकि ऐसा करके अच्छाई का बुराई में परिवर्तन हो जाता है और गलत के खिलाफ आवाज़ उठाने वाला व्यक्ति, गुस्सा कर भी अच्छा बन जाता है।बुरे बनकर भी अगर दूसरे को सही राह दिखानी पड़े तो वो बुरा भी बुरा नहीं होता। कवियत्री सोचती है अच्छाई को क्या ज़रूरत है अपनी आवाज़ उठाने की? लेकिन गलत होते देख या उसे सहना भी तो गलत है. इसलिए शायद इतिहास के पन्नो में हमने पाया की अच्छाई ने बुराई के खिलाफ आवाज़ उठाई। उदाहरण के तौर पर राम, कृष्णा, शिव, बुद्धा सबको ले सकते है।
मानव रूप में जन्म लेकर उन्होंने जग कल्याण करा गलत के खिलाफ आवाज़ उठाकर सबको सही राह दिखाई। अच्छाई की राह में कई परीक्षाये देनी पड़ती है लोग आपको नहीं समझते लेकिन एक दिन ऐसा ज़रूर आता है जब सबकी आँखे खुल जाती है क्योंकि सच कभी छुपता नहीं।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
बुरा बनकर भी अगर बहुतो का भला हो,
तो वो बुराई भी अच्छाई में बदल जाती है।
सही राह को दिखाने में,
अच्छाई भी बहुतो की नज़रो में बुरी बन जाती है।
गलत बात के खिलाफ, अच्छाई को भी,
आवाज़ उठाने में दुख होता है।
अच्छा करके बुरा, फिर अकेले में कही जाकर रोता है।
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अच्छे को कभी भूलेसे भी, गलत करने की ज़रूरत न होती।
बस अपनी अच्छाई को लेके, अच्छाई भी चैन से सोती।
लेकिन जब बुराई का कहर, इस दुनियाँ पर बरसता है।
अच्छाई को जगाने हेतू हर आम इंसान, इन्साफ के लिए तरसता है।
फिर उसके खिलाफ, अच्छाई को भी, अपना गुस्सा दिखाना पड़ता है।
इन्साफ की अग्नि के आगे, दोनों तरफ का ज्वाला फटता है।
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बुरा तो फिर भी बुरा करना नहीं छोड़ता।
अच्छा तो अच्छा करते-करते ही अपना दम तोड़ता।
फिर ईश्वर अच्छे को दम तोड़ने नहीं देते।
उसका साथ देकर, उसको इंसाफ हमेशा वो देते।
परीक्षा लेकर, अपने प्रति, वो आस्था तुम्हारी बढ़ाते है।
सोये हुये अपने भक्तो को, कड़ी परीक्षा लेकर जगाते है।
धन्यवाद