प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री बच्चो की मासूमियत का विवरण दे रही है। वह कहती है हर बच्चे में न जाने कैसी कशिश होती है कि उन्हें देखते ही उन्हें उठाने का दिल करता है और उन्हें डाट कर खुदको ही बुरा लगता है। बच्चो को ईश्वर का रूप शायद इसलिए ही कहा गया है क्योंकि उनमे कोई छल कपट नहीं होता है उनके दिल में जो भी होता है वह खुल के बताते है,सबके लिए मन मे प्यार, अपनी धुन में रहते है और किसी का बुरा नहीं करते।
अपनी नादानियों की वजह से कई बार डाट भी खाते है। कई बार बच्चो की गलती नहीं होती फिर भी वो डाट खाते है फिर जब बड़े उनसे माफ़ी मांगते है तो वह उन्हें माफ़ कर देते है। दोस्तों क्यों न हम बच्चो से उनकी कुछ अच्छी आदते ले जैसे माफ़ करना, अपनी बात खुल के रखना, लड़ना झगड़ना फिर से एक हो जाना। ज़िन्दगी छोटी सी है दोस्तों याद रखना ऐसा ज़रूरी नहीं कि हमेशा बड़ा ही सही हो। दोस्तों ये सोचना गलत है कि उम्र में छोटे इंसान को अकल नहीं, माना हमने ज़िन्दगी ज़्यादा देखी है लेकिन फिर भी हर बच्चा अपने आप में ज्ञानी है हर बच्चा कुछ न कुछ बड़ो को सिखाता है लेकिन शायद हम ही अपने घमंड के कारण छोटो की सही बात भी नहीं सीखना चाहते।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
कुछ तो कशिश होती है,
हर बच्चे की मासूमियत में कि,
उठाये बिना उन्हें राह नहीं जाता,
उसकी नादानियों को देख,
डाट कर उनसे कुछ कहा नहीं जाता।
कुछ तो कशिश होती है,
हर बच्चे की बातो में कि,
अपने दिल की हर एक बात ये हमसे कहते है।
अपनी भावनाओ के आगे ये चुप नहीं रहते है।
किसी की न परवाह कर, ये अपनी बात बोलते है।
दिखादे इन्हें, कोई इनके मन का खिलौना,
तो उसके आगे पीछे-डोलते है।
कुछ तो कशिश होती है,
हर बच्चे के जज़्बातों में कि,
भीड़ में भी अपनों के पास ये भाग कर आते है।
गिरते सभलते, ये दुनियाँ को भी समझ जाते है।
किसी बड़े की डाट इन्हे अक्सर पसंद नहीं आती।
इन्हे मनाने में, अच्छे अच्छो की जान निकल जाती।
कुछ तो कशिश होती है,
हर बच्चे की सोच में कि,
हर धर्म के बच्चे को, हर बच्चा अपना दोस्त बनाता है।
जाती, धर्म का भेद भाव किसी बच्चे को समझ नहीं आता है।
लड़ते झगड़ते,फिर दोस्त बनकर मुस्कुराते है।
अपनी इन हरकतों से, न जाने कितने लोगों को, ज्ञान ये समझाते है।
शायद इसलिए ही बच्चे ईश्वर का रूप कहलाते है।
कुछ तो कशिश होती है.
कुछ तो कशिश होती है.
धन्यवाद