प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को बता रही है कि कैसे उन्होंने अपने ही अंदर युद्ध छेड़ा और लिखने का मन न होते हुये भी इस कविता की रचना की। जैसे की वह हमेशा दुनियाँ से कहती है की जीवन की लड़ाई स्वयं से है किसी दूसरों से नहीं। कभी-कभी हमारा कुछ काम करने का मन नहीं होता लेकिन फिर भी खुदसे लड़कर वो करना होता है अब ये आप पर निर्भर करता है की आप वही काम ख़ुशी-ख़ुशी करे या दुखी मन से। हम सब का इस दुनियाँ में आने का कोई मकसद होता है उस लक्ष्य को छोड़ अगर हम कुछ और करने भागते है तो वहाँ हमारा मन नहीं लग पाता और हम फिर अपने लक्ष्य की ओर निकल पड़ते है। हर इंसान अनोखा है अलग है। किसी की भी तुलना किसी से नहीं करी जा सकती।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
न जाने क्यों आज लिखने का दिल नहीं करता।
ये दिल भी न जाने क्यों, हर लम्हे पे मरता।
मैंने पूछा क्या हर दिन कुछ लिखना ज़रूरी है?
दिल ने कहा इसमें मेरी नहीं, तेरी ही ख्वाहिशों की मंज़ूरी है।
माना आलस सबको आता है,फिर सोचा??
दो पल निकाल कर, कुछ लिखने में मेरा क्या जाता है??
फिर लिखने जब बैठी,
तो सोचा क्यों न आज सब कुछ छोड़, एक छुट्टी मनालू.
रोज़ के वही पुराने काम से दूर, आज चलो खुदको ही सजालू.
चल पड़ी, फिर मैं भी आइने के सामने।
रोज़ के कामों को छोड़ आज बस अपना हाथ थाम ने।
मुँह धोकर भी जब करार न आया।
इस कवियत्री ने हार कर फिर अपना कलम ही उठाया।
बैठ गई हार कर, लगी फिर इस मन की सुनने।
बैठते ही लगा ये मन भी,वही रोज़ की तरह रचनाओं के सपने बुनने।
बोला रोज़ की एक रचना में तेरा क्या जाता है??
अपने में ही रह कर, इस दुनियाँ में किसी को मज़ा नहीं आता है।
फिर सोचा, इस मन की हलचल,अब रोज़ मैं सबको बताऊँगी।
खुदसे लड़ने का सलीका, अब रोज़ में लोगो को सिखलाऊँगी।
ऐसे करते-करते एक दिन मैं भी इतिहास के पन्नो में जगमगाऊँगी।
इन रचनाओं के सहारे एक दिन मैं भी,
अपने लक्ष्य के शिखर पर पहुँच जाऊँगी।
उस शिखर पर पहुँच, फिर लोगो को बतलाऊँगी।
अपने शोक को पाले रखना।
ज़िन्दगी का असली स्वाद, फिर तुम इज़्ज़त से चखना।
धन्यवाद