प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को अच्छे इंसान की पीड़ा बताने की कोशिश कर रही है। वह कहती है कि इतिहास गवाह है कि हर अच्छे इंसान के आगे कितनी मुसीबतें आती है क्योंकि अच्छे इंसान की गलती बस इतनी ही होती है कि वो अच्छा होता है और आजीवन अच्छा ही रहता है। अच्छा इंसान केवल खुद के लिए नहीं सोचता बल्कि जग कल्याण के लिए वह खुद को भी पीड़ा पहुँचाता है।
उदाहरण के तौर पर हम सारे ईश्वर का उदहारण ले सकते है। ईश्वर ने जब-जब धरती पर मानव रूप में जन्म लिया उन्हें कितनी कठनाइयों का सामना करना पड़ा, सिर्फ इसलिए क्योंकि ये लोग अच्छे नहीं बहुत अच्छे थे। बुद्ध का लोगों ने तिरस्कार किया, उनका यह सन्देश था कि अगर हर मनुष्य चाहें तो वो खुदको अच्छा बना सकता है क्योंकि जीवन की लड़ाई केवल स्वयं से है किसी दूसरे से नहीं। हर इंसान जो सोचता है वह वही बनजाता है। अच्छे लोगो के संग बुरा इसलिए होता है क्योंकि अच्छे लोग अच्छाई के उदहारण होते है, उनके संग गलत होने पर भी वो किसीका बुरा नहीं सोचते।
अब आप इस कविता का आनंद ले
अच्छे का दोष बस इतना है,कि वो अच्छा है।
दुनियाँ की इस भीड़ में, अकेला वही मानव बस सच्चा है।
जो दुनियाँ के गलत कार्यो से मतलब रखता नहीं।
उसे समझने वाले भले ही रहते उससे दूर कही।
हर हाल में साथ देने वाला,
सही मायने में सच्चा मित्र तो बस है वही।
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अच्छे का दोष बस इतना है,कि हर हाल में,
अच्छा वो करता जाता है।
अपनों के खातिर, वो अपने लक्ष्य में,
इतना मगन हो जाता है।
दुनियाँ की भीड़ में भी,
उसे बस अपना लक्ष्य ही दिखाई देता है।
अपने को बना बस मज़बूत वो किसी का क़र्ज़ नहीं लेता है।
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अच्छे का दोष बस इतना है.
खुद को तपा कर वो दूसरे को भी राह दिखाता है।
महान होकर भी,
वो दूसरे के खातिर, अक्सर झुक जाता है।
ऐसे मानव को सताने में, नजाने इस दुनियाँ को क्यों मज़ा आता है।
किसी दूसरे को तड़ पाकर,
क्या मानव खुद खुश रह पाता है ??
धन्यवाद, कृप्या आप ये कविता बहुत लोगो तक पहुँचाये जिससे बहुत लोग सही ज्ञान तक पहुँचे। हमारी सोच ही सब कुछ है हम जैसा सोचते है वैसे ही बन जाते है।