प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री समाज को खुद को जानने कि प्रेरणा दे रही है, वह कहती है सब को अपने मन में झाँक कर देखना चाहिए कि हमारा मन में क्या पनप रहा है क्रोध या प्यार. जिसके मन में क्रोध पनपता है वह जीवन में धोखा खाकर प्यार की परिभाषा समझता है। कवियत्री कहती है क्यों न वक़्त रहते इंसान प्यार और ईमानदारी के पथ पर चलने लगे जिससे हर इंसान जीवन में सुख भोग सके.
इस दुनियाँ में कई प्रकार के लोग है कोई किसी का सहारा बनना चाहता है तो कोई दूसरे के प्रति प्रतिशोध की भावना रखता है, हमारी अपने गलत सोच के कारण हम सही इंसान को समझ नहीं पाते और गलत का साथ दे बैठते है हम सबको ये सोचना होगा बुरा इंसान अच्छा और अच्छा इंसान बुरा भी बन सकता हैं। गलत का साथ देना या खुद गलत करना हमे अंदर ही अंदर जला देता है। हमेशा ये याद रहे ईमानदारी की रोटी में सुख का स्वाद होता है।
अंत में कवियत्री बस यही कहना चाहती है कि बुराई को अपनी अच्छाई से जीतो जिससे गलत करने वाले को भी सही राह मिले, और वो गलत राह छोड़ कर सही रास्ते पर निकल आये।क्यों न बस अच्छा कर दुनियाँ के लिए हम एक आदर्श बन जाये।
अब आप इस कविता का आनंद ले
किसी के दिल में प्यार,
तो किसी के दिल में नफरत पनपती है।
धोखा खाने के बाद ही,
ये दुनियाँ प्यार की परिभाषा समझती है।
किसी के दिल में प्रतिशोध,
तो कोई किसी का सहारा बनना चाहता है।
उस सहारे को न पहचान कर,
तू अपनी ही बुनी गलत सोच में अंदर ही अंदर जल जाता है।
किसी के दिल में करुणा,
तो किसी के दिल में क्रोध हैं।
क्रोध कर बस अपनी चलाना,
इस बात का करा हर बार मैंने विरोध है।