शायद वो दिन जल्द ही आएगा

प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री खुदसे ही बात करते हुये अपने आप से ये कह रही है की शायद एक दिन वो ज़रूर आयेगा जब उनकी अच्छाइयों का घड़ा भर जायेगा फिर शायद कभी उनका नाम भी इतिहास के पन्नो में जग मगायेगा।

शायद वो दिन जल्द ही आएगा

आज कल की दुनियाँ को  देखते हुये वो सोचती है की अब लोगो में सही ज्ञान समझने की इच्छा नहीं फिर भी जो  सही मार्ग पर चलना चाहते है  वो उनके लिए अपनी कविताये इस दुनियाँ में छोड़के जाना चाहती है। ये कविताये उनके लिए होंगी जो शांति के पथ पर चलकर अपना जीवन बिताना चाहते है बिना किसी भेद भाव के जिस मानव के अंदर सबके प्रति सामान प्रेम होगा यह कविता सिर्फ उन्हें ही समझमे आयेंगी।

अब आप इस कविता का आनंद ले।

धीरे-धीरे जब तेरी,
अच्छाइयो का घड़ा भर जायेगा।
तेरी एक झलक से ही बहुतो का मन,
ख़ुशी से भर आयेगा।
तुझसे मिलने की ख्वाहिश,
लोग अपनी दुआओ में रखेंगे।
तेरे ज्ञान का स्वाद,
वो तेरी इन कविताओं के ज़रिये चखेंगे।
शांति की प्राप्ति तो इन कविताओं में छुपे,
ज्ञान को अपना कर ही होजायेगी।
जब तक रहेगी ये दुनियाँ,
इन कविताओं की छवि हर युग में जगमगायेगी।
इन्हे समझने वाले लोग होंगे भले ही कम।
बस खुदको सताकर,
तू करना न किसी बात का गम।
क्योंकि हर युग में अच्छाई की ज़रूरत तो होती है।
दूसरों  के व्यवहार से,
तू खुदको जलाकर क्यों रोती है??
अपनी भरपूर शक्ति से बस अच्छाई का डंका बजादे।
अपने मधुर व्यवहार से तू लाखो की दुनियाँ सजादे।

धन्यवाद।

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