प्रस्तुत पंक्तियों में कवियत्री दुनियाँ को माँ की ममता का वर्णन कर रही है। वह कहती है कि कोई भी माँ अपनी ख़ुशी से अपने बच्चे की डांट नहीं लगाना चाहती बस अपने बच्चे को गलत दिशा में बढ़ते देख वो रह नहीं पाती और फिर माँ को भी अपनी आवाज़ उठानी पड़ती है। माँ के जीवन में भले ही कितने दु:ख क्यों न हो, माँ फिर भी खुदको थामे अपनी संतान को प्यार से समझाती है। माँ का पूरा जीवन तो अपने बच्चो की देखभाल में ही निकल जाता है लेकिन कवियत्री को ये सोच कर भी बहुत बुरा लगता है कि वही बच्चा बड़े होकर अपनी माँ के बलिदान को भूल जाता है। याद रखना दोस्तों माँ के अंदर पूरा ब्रम्हांड समाया हुआ है उसने तुम्हारी रचना बहुत पीड़ा सह कर की है ऐसी बलिदान की देवी का दिल तुम कभी न दुखाना।
माँ का पूरा जीवन तो अपने बच्चो की देखभाल में ही निकल जाता है लेकिन कवियत्री को ये सोच कर भी बहुत बुरा लगता है कि वही बच्चा बड़े होकर अपनी माँ के बलिदान को भूल जाता है। याद रखना दोस्तों माँ के अंदर पूरा ब्रम्हांड समाया हुआ है उसने तुम्हारी रचना बहुत पीड़ा सह कर की है ऐसी बलिदान की देवी का दिल तुम कभी न दुखाना।
अब आप इस कविता का आनंद ले।
अपनी इच्छा से कौन माँ,
अपने बच्चे को डाँटना चाहती है ?
अपने बच्चे को पहले डाँट,
बाद में वो भी कही अकेले में जाकर,अश्क बहाती है।
अपने बच्चे के ऊपर हर माँ निस्वार्थ प्यार लुटाती है।
रूठे हुये अपने बच्चे को, माँ प्यार से मनाती है।
अपनी ख्वाहिशों को दबाकर,
अपने बच्चो की दुनियाँ माँ सजाती है।
बलिदान की देवी माँ, ऐसे ही थोड़ी न कहलाती है।
अपने हज़ारो दुखो में भी उलझी माँ,
फिर भी अपनों को माँ प्यार से समझाती है।
लाठी बन सबकी, वो सबको सही दिशा दिखाती है।
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बच्चे का रोना माँ को, अक्सर बहुत सताता है।
दु:खी मन से बच्चा, हर बात केवल अपनी माँ को बताता है।
ममता भरे उसके आँचल में, सुकून सबको मिल जाता है।
उसकी करुणा के आगे, एक मुरझाया फूल भी खिल जाता है।
ईश्वर की ऐसी रचना के रहते, हर बच्चे का बचपन,
माँ के आँचल में सुकून से निकल जाता है।
ममता के आंचल के साये में ,
हर बच्चा सुकून से पनप जाता है।
फिर बड़े होकर वही बच्चा,
कैसे अपनी उस माँ का, बलिदान भूल जाता है?
धन्यवाद
 
            
 
		



















































