दहेज की ये कहानी कई घरों की हकीकत है और पुरूष के दर्द को बयां करती है। मैं जानता हूँ कानून आज पत्नी के साथ है, चाहे आदमी कितना भी सही हो, वह इस कानून के डर से अपनी पत्नी की गलत बातें भी मानने को मजबूर है।
मैंने दहेज नहीं मांगा इंस्पेक्टर साहब । मैं थाने नहीं आउंगा, अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा, माना पत्नी से थोड़ा मन मुआव और सोच/विचारों में अंतर था जैसे सब के साथ होता है, पर आप विश्वास कीजिये, मैंने दहेज नहीं मांगा । समाज में आज महिलाओं का बहुत ज्यादा विकास हो रहा है । लेकिन मैं भी यही चाहता था कि जिससे मेरी शादी हो वो मेरे माता पिता के सम्मान के साथ साथ सेवा करते हुए अपने दाम्पत्य जीवन का निर्वाहन करे. उन्हें भी अपने माता पिता समझे, किसी भी बात पर उनका अपमान नहीं हो. लेकिन इन सब बातों का अब कोई मोल नहीं जब हर रिश्ते का धागा ही टूट जाए तो फिर किसी पर भी भरोसा करने जैसी स्थिति नहीं रहती ।
इसे परिवार के साथ रहना पसंद नहीं, माॅं बाप के साथ रहते हुए जिंदगी जीने का आनंद नहीं, हम अलग किसी दूसरे घर में रहेंगे जहाॅं हमारे अलावा और कोई नहीं हो । माॅं बाप के साथ रहने में कुछ नहीं है जो इन्होने देना था, दे चुके। अब आपकी कमाई इन पर नहीं लुटवाने दूंगी. इनको छोड़ दो और हमारे भविष्य के बारे में सोचो । अगर ऐसा नहीं किया तो मैं क्या कर सकती हूॅं तुम्हें नहीं मालुम कानून औरतों का रखवाला है चाहे झूठी हो या सही उन्हें तो बस हमारा बयान चाहिये और मैं ये बयान दे दूॅंगी जिसके बाद तुम अपने माॅं बाप के साथ जेल में ही रहना ।
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मैं ही बूढे़ माॅं बाप का साथ नहीं छोड़ पाया क्योंकि उनसे बचपन से बहुत ज्यादा लगाव था दिखावे का नहीं भीतर से । मैंने दहेज नहीं मांगा इंस्पेक्टर साहब । फिर उनसे अलग करने के लिये उसने अपना रंग दिखाना शूरू किया । मैं भी समझ गया था कि अब ये ऐसे ही मानने वाली नहीं है । औरत चाहे तो सूई से घर को कंक्रीट का ढेर बना सकती है और चाहे तो उसी सूई से पूरे घर को एक धागे में पिरो कर रख सकती है । फिर उसने अलग होने का बहुत ज्यादा जोर लगाया तो एक दिन साफ कह दिया कि मैं माता पिता के बगैर नहीं रह सकता तो उसने बहुत ज्यादा झगड़ा किया और अपने पिहर चली गई ।
उधर पहुंचते ही उसके भाई ओर बाप ने फोन पर घमकाने लगे कि जैसा ये चाहती है वैसा करो वर्ना अंजाम भुगतने को तैयार रहना । झगड़ा मां बाप से अलग होकर रहने का था लेकिन उसने रंग दहेज के लालची का दे दिया और आपके पास आ गई । अब आप फोन कर रहे हैं, क्यों पत्नी से दहेज मांगते हुए शर्म नहीं आती, अगर अन्दर कर दिया तो सात साल तक बाहर नहीं निकलने दूंगा ध्यान रखना । और वो तेरे माॅं बाप भाई बहन और जीजा कहाॅं है उनके भी नाम है ।
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घर वालों को तो मालुम ही नहीं है कि ये तो अलग होने के लिये अकेले में बोलती थी और झगड़ा करती थी अब जब पुलिस केस बन गया है और वहाॅं से फोन आया है तब उन्हें मालुम हुआ है, नही तो मैं इन्हें पता ही नहीं चलने देता । अब अकेले में बैठ कर सोचता हूॅं क्यो मैंने इसको पत्नी स्वीकार किया और क्यों उसकी हर जरूरत को पूरा किया. फिर भी इसने अपना रंग दिखा ही दिया और मुझे दहेज लोभी पति का मैडल थमा ही दिया ।
अब कोई फायदा नहीं उसके साथ भविष्य के रंगीन सपने देखने का, आपने बुलाया था इसलिये थाने आया हूॅं आपसे डर कर कहीं नहीं भागा हूॅं । क्योंकि साहब आप विश्वास कीजिये, मैंने दहेज नहीं मांगा ।