महिलाओं के विवाह संबंधी अधिकार

Women's Marriage

देश का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता से रहने का अधिकार प्रदान करता है। स्वतंत्रता से जीने के लिए बहुत से अधिकार संविधान में दिए गए हैं जिनका उपयोग करके प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकता है तथा अपना हक मांग सकता है परंतु उसके लिए अधिकारों के बारे में जानना बहुत जरूरी है।

आज हम बात करेंगे महिलाओं के विवाह संबंधी अधिकारों के बारे में जिनकी बारे में प्रत्येक महिला को जानकारी होना आवश्यक है। जिससे विवाह के बाद प्रत्येक महिला उन अधिकारों का उपयोग कर अन्याय से बच सके।

कंजूगल राइट्स-

प्रत्येक महिला को शादी के बाद पत्नी होने के नाते पति पर सभी अधिकार मिलते हैं। पति के साथ रहना एक महिला का अधिकार है चाहे वह संयुक्त परिवार में रहे,एकल परिवार मे या किराए के मकान में । शादी के बाद अगर कोई महिला सरनेम नहीं बदलना चाहती तो उसके ससुराल वाले उसे सरनेम बदलने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।

शादी निरस्त करने का अधिकार-

अगर किसी महिला की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ हुई है और पति पत्नी के बीच कोई संबंध स्थापित नहीं हुआ हैं तो वह महिला हिंदू मैरिज एक्ट 12 (1) के तहत शादी को निरस्त करने के लिए कोर्ट की शरण में जा सकती है तथा किसी तरह का दबाव बनाए जाने पर वह इन अधिकारों का उपयोग कर सकती है।

शादी के समय मिले धन पर चाहे वह मायके से मिला हो या ससुराल से केवल उस स्त्री का अधिकार होता है उसकी मर्जी के बिना कोई भी उस स्त्री धन को नहीं ले सकता।

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 तलाक लेने का अधिकार-

नाकाम शादी से तलाक लेने का अधिकार प्रत्येक महिला को है। अगर कोई पुरुष 2 साल तक अपनी पत्नी से कोई संबंध स्थापित नहीं करता तो उस महिला आपको पूरा अधिकार है कि ऐसी शादी से वह बाहर निकले। तलाक के बाद अगर महिला दूसरी शादी नहीं करती तो पूर्व पति से एनीमनी और गुजारा भत्ता लेने का  पूरा अधिकार है।

घरेलू हिंसा से छुटकारा प्राप्त करने का अधिकार-

विवाह के बाद अगर कोई भी महिला अपने पति या ससुराल द्वारा मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित की जाती है तो घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का उपयोग करके वह अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकती है। घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला सुरक्षा प्राप्त करने के लिए कोर्ट से सहायता भी मांग सकती है।

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