रोष है हम में, गुस्सा भी है पर वो निकलता क्यों नहीं है, सहीं जगह, बस एक घटना घटी और चल दिए हम इंडिया गेट की तरफ, हाथों में कैंडल उठाएं मौन होकर, एक दिन दो दिन या ज्यादा से ज्यादा चार दिन। इससे ज्यादा और नहीं होगा यह मार्च पर, जो होगा वो इस देश की मासूमियत के साथ होगा, जिस तरह 8 साल की आसिफा के साथ हआ है, फिर कोई वहशी उन पर नजर डालेगा, उन्हें कुचलेगा और हमें तब पता लगेगा, जब वो सिस्किया लेते हुए खामोश हो जाएंगी। और हमारे देश के चंद रसूखदार या तो अपनी राजनीति को चमकाने को लिए अनशन पर बैठ जाएंगे या उसके घर जाकर दो बोल आएंगे। पर क्या उन बोलो में वो मार्मिकता या कमी नजर आएंगी, जो उस जलते हुए दीपक ने बुझते समय महसूस की होगी, क्या उन बोलों से उनकी बेटी वापस आ पाएगी । क्या उस घर में फिर से हंसी गूंजेगी?
नहीं ना फिर क्यों यह चेहरों पर नकाब , क्यों यह चार दिन की नारेबाजी, जिससे कुछ नही बदलेंगा,क्योंकि हम कुछ बदलना नहीं चाहते, हम फिर से ऐसी किसी खबर की तलाश में है,जो हमें कैंडल मार्च करने का मौका दे दे। एक बार बस एक बार जम्मू के कठुवा और उन्नाव में जहां कुछ सभ्रांत वर्ग में शामिल किए जा रहे व्यक्तियों ने सिर्फ अपनी लालसा को पूरा करने के लिए एक 8 साल की मासूम बचपन के साथ , रात के अंधेरे में हैवानियत का खेल खेला, जब तक उसकी सांसे उससे अलविदा न कह दी ।
ये वो लोग है जिन्हे सरकार अपना नुमाइंदा बना कर हमारी सेवा के लिए लाती है, तो जानिए कितनी शिद्दत से करते है ,यह जनता की सेवा ,जिसमें सिर्फ इनकी इच्छाएं ही पालती है,और जब इनकी अखिक्त सामने आती है ,तो इन्ही की सरकार इन्हें बचाने के लिए हर कायदा कानून ताक पर रखती है।
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कानून उसकी क्या कहे, ऐसा लगता यह सिर्फ तीन अक्षर में ही सिमट कर रह जाएगा क्योंकि आज तो बस केवल इसे जनता को डराने के लिए काम आता है, ना कि उनकी रक्षा अगर एसा होता तो,आज 8 साल की मासूम आसिफा अपने मां बाप के साथ घर में होती अपने, स्कूल के लिए तैयार होती अपने सपनों को पूरा करने के लिए ।
जाहिर असिफा की आंच चंद दिन की है , फिर कोई कैंडल मार्च नहीं फिर को पार्टी आलाकमान का अनशन नही, बस रह जाएगा हम और आप जैसे मां बाप जो अपनी बच्चियों या तो जीपिएस तकनीक से लैस कर देंगे । क्यों अब तो हमारी बच्चियां भी कहने लगी ह
कैसे कहूं बाबा की मैं सुरक्षित हूं
जब हर शाख पर शिकारी बैठा है।















































