ढाकिए घूम घूम कर मोहल्ले में दुर्गापूजा के आगमन का एहसास करा रहे हैं। बाजार में भी नये फैशन के कपड़े भरे पड़े हैं। किसी फिल्म में कोई ड्रेस आई नहीं कि उससे मिलती जुलती ड्रेस हर जेब के हिसाब से अलग अलग कीमत पर बाजार में उपलब्ध हो जाती है। बंगाल में दुर्गापूजा नये कपड़ों में ही की जाती है। रिश्तेदारों को भी नये कपड़े भेंट में देने की परम्परा है। हमारे परिवार को गोरखपुर से यहां आये बीस साल हो गये हैं। भाषा तो सीख ही ली है, रीति रिवाज भी ओढ़ लिए हैं।चलूं देखने भाभी क्या कर रही हैं। भाभी भाभी दरवाजा खोालो। दिन चढ़ आया है, कल अष्टमी है कन्यायें तो जिमानी ही हैं। क्या तैयारी है? कन्याओं के लिए छोटे छोटे गिफ्ट लेने जाऊॅंगी सोचा तुम से पूछ लूं। अरे! तुम अभी तक बिस्तर पर ही पड़ी हो। कहां तुम हर साल मोहल्ले में घूम घूम कर कन्याओं को सबसे पहले अपने घर जीमने का न्योता दे आती थी और हमारे घर आते आते सब के पेट भर जाते थे ।
भाभी अपने विचारों की दुनिया से निकलकर बोली – नीलू बोले ही जा रही है पता नहीं क्या क्या । अच्छा कल अष्टमी है! समय का पता ही नहीं चला। सुबह आंखें खुलती हैं तो उठकर क्या करू? किसके लिए करूं? कुछ नहीं सूझता । जीने के लिए, कुछ करने के लिए, कोई तो वजह होनी चाहिए । तेरे जेठजी को गये दस महीने हो गये । तुम लोगों ने जैसे तैसे बिटिया ब्याह दी नहीं तो —- ।
नहीं भाभी नहीं । त्यौहार के दिन आंसू ना बहाना । मानती हूँ बहुत बड़ा दुख टूटा है पर होनी को कौन टाल सकता है। चैबीस साल का साथ ही लिखा कर लाये थे भैया तुम्हारे साथ । ये भी तो सोचो तुम्हारे ऊपर जान छिड़कते थे । ना कोई ऐब न कभी गुस्सा । एक इनको देख लो जिस दिन जरा सी चढ़ा ली फिर तो कोई गाली नहीं बचती । कहां मैं भी अपनी लेकर बैठ गयी । भाभी तुम्हारे देवरजी को नाश्ता देकर आयी थी । मेरी तो चाय भी ठंडी हो गयी होगी । एक एक कप चाय बना ही लेती हूं ।
अरे फ्रिज में दूध भी नहीं है क्या ? क्या कल दूधवाला नहीं आया था ? भाभी सकुचा सी गयी – क्या बताऊॅं नीलू । तेरी भाभी को अब कुछ होश नहीं रहता । गैस पर दूध चढ़ाया था । जाने किन ख्यालों में डूबी रह गयी । कब दूध जल कर पपड़ी बन गया, पता ही नहीं चला । कहां तो कभी दूध उबल कर बहने नहीं देती थी, अपशकुन मानती थी । अब तो — ।
कोई नहीं भाभी, हो जाता है । धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा । लाल चाय बना लेती हूँ ।ओहो लगता है तुमने तो कल रात खाना भी नहीं खाया । कैसरोल में रोटिया पड़ी हैं । कोई बात नहीं । इनके पराठे सेक लेती हूं । दोनों देवरानी जेठानी का नाश्ता हो जायेगा । नीलू कितना ख्याल रखती है री तू मेरा । जब से तेरे जेठजी गये हैं देख रहीं हूं तू बहुत समझदार भी हो गयी है । और मैं — ।
मैं तो जैसे जीना ही भूल गयी हूँ । उस एक्सीडेण्ट ने तेरे जेठजी को ही नहीं, मेरी आत्मा को भी इस धरती से उठा लिया है । तेरा और देवरजी का साथ न होता तो न प्रिया का ब्याह कर पाती । ये तो अच्छा रहा कि वे रिश्ता पक्का कर गये थे नहीं तो कहां लड़का देखती – बोलते हुए भाभी का गला रूंध गया ।
भाभी प्रिया हमारी भी तो बेटी है । तुमने भी तो मुझे माँ की तरह गृहस्थी का हर काम सिखाया । सासू मां के कड़े रूख के आगे एक तुम ही थी जो टिक पाती थी । नहीं तो मुझ जैसी अल्हड़ नासमझ बहू को वे कब की घर से निकाल चुकी होतीं । सच बताऊॅं भाभी जब मैं नयी नयी आई थी ना तो तुम्हारी सुन्दरता, तुम्हारी सुघड़ता से बड़ी जलन होती थी । ऐसा कौन सा काम था जो तुम्हें नहीं आता था नाच-गाना, रसोई, हर गुण रहा है तुममें ।
चल छांड़ नीलू, क्या लेकर बैठ गई । अब कुछ याद नहीं रहा । ये जो औरत का जीवन है ना, इसे जीने के लिए कोई वजह चाहिए । रोटी भी बनाती है तो कभी पति के नाम पर] कभी बच्चों के नाम पर । आज मेरे पास त्यौहार मनाने की कौन सी वजह है । नहीं भाभी नहीं । हम जिन्दा हैं] यही वजह बहुत है त्यौहार मनाने की । भैया की आत्मा कितनी तड़पती होगी तुम्हें ऐसे दुखी देखकर । कभी तुम्हें एक आंसू नहीं बहाने दिया और अब तुम दस महीने से खुद की सुध भी नहीं लेती । प्रिया के शुभ के लिए ही त्यौहार मना लिया करो ।
हां प्रिया से तो फोन पर बात करके उसे समझा दिया कि क्या क्या कैसे कैसे करना है और फिर उसकी तो सास है ही सब ठीक से करवाने को । बस मेरा तो त्योहार उसी में हो गया ।
सच बताऊॅ भाभी । इन्सान अपने रोजमर्रा के काम करता रहे तो भी ज़िन्दगी कट ही जाती है । हमारे जीवन में कुछ नयापन आता रहे] इसीलिए शायद त्योहारों को मनाने की परम्परा शुरू हुई । त्यौहार परम्परा और नियम तो बाद में बने] पहले तो ये हमारी भावनाओं का प्रतीक हैं । हरसिंगार के फूल भी नवरात्रों के आते आते भर जाते हैं] मानो साल भर नवरात्रों का ही इन्तजार करते हों । प्रकृति भी हर हाल में खुशियां बिखेरना नहीं छोड़ती] तो हम कैसे खुशियां बाटना छोड़ सकते हैं ।
दरवाजे पर खट-खट हुई । दरवाजा खोला तो सामने मुखर्जी बाबू की पोतिया काजू और किशमिश खड़ी थीं । भाभी ने फटाफट आसू पोछ कर चेहरे पर मुस्कुराहट ओढ़ ली ।
आटी । ऐई बोछोर अमाके खावा दावा जोनने डाकबेन ना । की गिफ्ट दिच्चेन । (आटी । इस साल हमको खाने के लिए नहीं बुलाओगी क्या । क्या गिफ्ट दोगी ।)
दोनो बच्चिया प्यारी सी आवाज में भाभी से फरमाईशें करने लगीं ।
भाभी भी जैसे उनकी मीठी बातों से खिल गयी । दोनों को भाभी ने गले लगा लिया और बोली – कैनो डाकबो ना । (क्यों नहीं बुलाऊॅंगी) दुर्गामा नन्हें नन्हें पैरों से खुद मेरे दरवाजे आयी हं तो कैसे अपने दुख लिये बैठी रहू । सुनो] कल सुबह आठ बजे सबसे पहले मेरे यहां आ जाना । देर की तो सर्प्राइज गिफ्ट नहीं मिलेगा । साथ में अपनी सभी सहेलियों को भी ले आना । कन्यापूजन में मैं कन्या नहीं गिनती । जितनी दरवाजे पर आ जायें] सबका स्वागत है – भाभी तो जैसे बदल ही गयी थी ।
नीलू ! कब गिफ्ट लेने जायेगी । मैं भी चलूगी । बिन्दी] क्लिप] चूड़ियां] सब लेकर आऊॅंगी ।
भाभी की आंखों से अविरल धारा बह रही थी । उन्हें फिर से त्योहार मनाने की वजह मिल गयी थी ।