मोदी की सूनामी में पूरा समाजवादी कुनबा बह गया, अखिलेश जीत के लिए कांग्रेस तक के साथ गठबंधन को तैयार हो गए. लेकिन 6 महीने चला मुलायम कुनबे के झगड़े में वो साइकिल नहीं चला पाए. मुलायम और शिवपाल को दरकिनार करने का खामियाजा अखिलेश को कुर्सी गंवाकर भुगतना पड़ा, इसीलिए सपा की इतनी करारी हार के बाद भी शिवपाल मुस्कुराते दिखे, शिवपाल यादव ने कह भी दिया, कि ये समाजवादियों की नहीं, बल्कि घमंड की हार है.
अखिलेश ने कई जगह मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया. उन्होंने चुनाव में विभीषण की भूमिका निभाई, टिकट बंटवारे में अखिलेश ने किसी की सलाह नहीं ली, इस वजह से उन्हें कभी ग्राउंड की सही जानकारी नहीं मिल पाई. 50 से ज्यादा सीटों पर भितरघात हुआ, कई जिलों में सपा की कार्यकारिणी बदली गई. बूथ लेवल खांटी समाजवादी मुलायम और शिवपाल को किनारे किए जाने से नाराज थे. ऐसे में पूरे यूपी में सपा में जाने वाले कम से कम 10% यादव वोट में बिखराव हुआ.
जिस तरह देवबंद जैसी मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी बीजेपी की जीत हुई है, उससे साफ हो गया कि सपा का परंपरागत वोट बैंक भी इस बार छिटक गया, पश्चिमी यूपी में हुए दंगों की वजह से पहले-दूसरे चरण में अखिलेश को मुस्लिम की नाराजगी झेलनी पड़ी. दादरी कांड से मुसलमानों के बीच मैसेज गया कि प्रदेश के मुसलमानों की सुरक्षा अखिलेश के बस की बात नहीं है.
अखिलेश सरकार ने लखनऊ में खूब विकास किया, लेकिन अखिलेश को लगा कि ऐसा विकास पूरे पूरे प्रदेश में हो रहा है. कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर भी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता नाराज थे.
यूपी ने राहुल को पूरी तरह नकार दिया, कुल मिलाकर यूपी के जय-वीरू साथ साथ अपनी पहली परीक्षा में ही बुरी तरह फेल हो गए, यूपी को ये साथ पसंद नहीं आया