हम सभी निश्चित रूप से सौभाग्यशाली हैं कि हम ऐसे युग में जीवन यापन कर रहे हैं, जब चिकित्सा के क्षेत्र में जारी अनुसंधान से नित नये ज्ञान, तकनीकें और औषधियॉं उपलब्ध हो रही हैं जिससे असाध्य बीमारियों भी साध्य होती जा रहीं हैं ।
पर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आज के इस युग में नित नई और असाध्य रोग उत्पन्न हो रहीं हैं और पुराने रोगों के लिए भी नई औषधियों का अनुसंधान करना पड़ रहा है क्योंकि पुरानी औषधियों प्रभावहीन होती जा रही हैं । यह भी एक स्वीकृत तथ्य है कि आज के मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीर्ण होती जा रही है और चिकित्सा पर निर्भरता बढ़ती जा रही है ।
मेरे विचार में इस विसंगति और विडम्बना के प्रमुख कारण निम्नवत हैं –
1) मानसिक व्यस्तता और तनाव – आज का मनुष्य – चाहे वो समाज के किसी भी वर्ग का हो, धनवान हो या निर्धन, नर हो या नारी, सभी अपनी दिनचर्या में इतना लिप्त है कि उसे अपने लिये, अपने शरीर और स्वास्थ्य के लिए समय ही नहीं है । जिसके पास धन का अभाव है, वो जीवनयापन की कशमकश से जूझ रहा है, और जिसका जीवनयापन सुविधा से हो रहा है, वो भी और अधिक आगे बढ़ने की, और धन संचित करने, की होड़ में रत है । इस व्यस्तता और होड़ में स्वयं पर, अपने तन मन पर, ध्यान देने का समय आज मनुष्य के पास नहीं है ।
2) स्वस्थ खानपान की कमी – आज का मनुष्य दूषित पर्यावरण में रह रहा है, संकर (हाईब्रिड) या कृत्रिम किस्म के अनाज, सब्जियॉं, वनस्पति का सेवन कर रह है जिनकी पैदावार उर्वरकों से की जाती है । इसके अतिरिक्त फास्ट फूड या पैक्ड फूड के बढ़ते प्रचलन के कारण अधिक मात्रा मे रसायन युक्त भोजन का उपभोग कर रहा है (भले ही ऐसे रसायन खाद्यापदार्थों के लिए स्वीकृत हैं, जैसे स्वाद, रंग या परिरक्षा के लिए प्रयुक्त परमिटेड आर्टिफिशियल फ्लेवर्स, कलर्स और प्रिजर्वेटिव्ज़्, इत्यादि) । इसके अतिरिक्त मिलावटी भोजन भी जाने अनजाने में खाया जा रहा हैं – प्लास्टिक चावल का वीडियों यदि ये सच है तो इसका ज्वलन्त उदाहरण है ।
3) स्वस्थ आचार विचार की कमी – आज का मनुष्य शारीरिक सुविधा और आराम को ही अपनी उपलब्धि मानता है । नित नये अन्वेषणों ने जहॉं मनुष्य की दैनिक क्रियाओं और चर्याओं को सुविधाजनक किया है, वहीं आरामतलब भी बना दिया है और मनुष्य का शरीर, जिसे प्रकृति ने श्रम के लिए बनाया था, ढलता जा रहा है । मनुष्य की मानसिक व्यस्ततता और तनाव बढ़ता जा रह है, पर शारीरिक श्रम न के बराबर है । उदाहरणस्वरूप दिन भर कम्प्यूटर पर कम करने वाले आज के बुद्धिजीवी । इसके अतिरिकत बढ़ते प्रदूषण ने केवल पर्यावरण को ही दूषित नहीं किया है, समाज में नैतिक मूल्यों का भी पतन किया है । एड्स जैसा भयानक असाध्य रोग आज के इस विकसित युग की ही देन है ।
इन सभी समस्याओं से निदान पाने के लिए योग से अधिक लाभकर और कुछ भी नहीं हो सकता । व्यस्त दिनचर्या में भी बहुत कम समय ही नियमित रूप् सेयोग करने से शरीर स्वस्थ और मन भी शान्त और प्रसन्न रह सकता है । इसके लिए भारी व्यायाम करने की आवश्यकता नहीं है । ऐरोबिक्स या जिम जाकर हम जो व्यायाम करते हैं, उससे भले ही चर्बी भले घटती है, मॉंसपेशियॉं सख्त होकर बाहर दिखने लगती हैं, परन्तु मन को एकाग्रता और शान्ति नहीं मिलती । तन और मन दोनों के तालमेल के लिए योग ही सर्वोत्तम उपाय है । प्रतिदिन योगाभ्यास के लिए आधा या पौना घंटा निकालने से ही शरीर को सुदृढ़ और मन को संतुलित रखा जा सकता है ।
इसी अनुभूति को पूरे देश ही नहीं, विश्व भर में फैलाने के लिए और योग के प्रति प्रत्येक मनुष्य को जागस्क करने के लिए ही आज 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है । हमारे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र के सम्मुख अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रस्ताव में योग की महिमा का वर्णन करते हुए कहा था कि योग भारतीय पुरातन संस्कृति का अमूल्य उपहार है, शरीर और मन, विचार और व्यवहार, संयम और पूर्ति, प्रकृति और मनुष्य के सामन्जस्य का प्रतीक है, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र आचार व्यवहार है । 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस इसलिए रखा गया क्योंकि यह उत्तरी गोलार्ध का साल का सबसे बड़ा दिन है और उत्तरी गोलार्ध के अनेक देशों में इसे त्योहार के रूप में मनाया जाता है । इसके अतिरिक्त यह भी माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने, जिन्हें हमारे शास्त्रों में आदि योगी कहा गया है, ने अपने सात भक्तों पर ध्यान दिया था जिन्होंने अनेक वर्षां तक योग साधना की थी ।
इसी उद्देश्य से मैं आज इस अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर अपना व्यक्तिगत अनुभव पाठकों से साझा कर रही हूॅं कि कैसे दिन प्रतिदिन के योगाभ्यास से बहुत कम समय में ही (मेरे अनुभवानुसार आधा घंटा) अपने मन और शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं ।
सर्वप्रथम यह ध्यान देने योग्य है कि योगाभ्यास करते हुए हम स्वयं को कुछ समय देते हैं । यह वो पल होते हैं जब हम स्वयं के साथ होते हैं, स्वयं को परखते हैं । दिनभर की भागदौड़ और व्यस्तता में मन और तन अलग अलग भागते हैं । ऐसे में अपने मन और तन की लयताल में सामन्जस्य बैठाना ही योग है ।
योग के अभ्यासों से, क्रियाओं से, स्नायु तत्र, मॉंस पेशियों, ग्रन्थियों, आदि में रक्त संचार सशक्त होता है । प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, कपाल-भाति, भ्रामरी, इत्यादि ऐसी योग क्रियाएॅं हैं जो मस्तिष्क सहित पूरे शरीर में आक्सीजन की परिपूर्ति करती हैं । फेफड़ों में स्वस्थ वायु प्रवेश करती है, हृदय भी सशक्त होता है ।
मेरी नियमित योगाभ्यास की आधे घंटे की चर्या निम्नवत है – सर्वप्रथम सभी जोड़ों का व्यायाम करती हूॅं, जैसे गर्दन, कंधे, कमर, घुटने को दोनों तरफ दस दस बार घुमाती हूॅं । फिर ऑंखों को भी दोनों तरफ आरास से कई बार घुमाती हूॅं । फ़िर हथेलियों को रगड़ कर गरम कर बंद ऑंखों पर रखकर ऑंखों को आराम देती हूॅं । इसके बाद श्वसन व्यायाम – अनुलोम-विलोम करती हूॅं । यह बहुत ही आसान अभ्यास है जिसे नाड़ी-शोधन व्यायाम भी कहा जाता है । इस अभ्यास को रोज़ दस से बीस बार करती हूॅं ।यह अभ्यास दिमाग के लिए बहुत उपयोगी है । इसके बाद मैं भ्रामरी और कपाल-भाति करती हूॅं । भ्रामरी व्यायाम यदि प्रतिदिन किया जाये जो तनाव, थकान और उच्च रक्तचाप से मुक्ति पायी जा सकती है । इसके अतिरिक्त मैं पवनमुक्तासन, पृष्ठतानासन, वज्रासन, शशकासन, वक्रासन नित्य प्रति करती हूॅं और अन्त में शवासन कर पूरे शरीर को शान्त और प्रसन्नचित्त अनुभूत करती हूॅं । इन सभी आसनों/क्रियाओं को करने में आधा-पौन घंटे का समय ही लगता है और शरीर और मन दिन भर के लिए स्फूर्त और ऊर्जावान हो जाते हैं ।
आईये, आज अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस को हम सब नित्य योगाभ्यास कर स्वयं को स्वस्थ रखने की प्रतिज्ञा लें । स्वयं स्वस्थ होंगे तभी स्वस्थ समाज और स्वस्थ भावी पीढ़ी की बात कर सकते हैं । स्वस्थ शरीर जैसा सौन्दर्य और नहीं हो सकता है । जिस व्यक्ति का स्वस्थ चित्त, तन और मन है, उसके चेहरे की चमक ही अलग होती है ।
व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घा युष्यं बलं सुखं ।
आरोग्यं परमम् भाग्यम् स्वास्थ्यम् सर्वार्थसाधनम् ।।
(अर्थात व्यायाम से स्वास्थ्य, दीर्घायु, बल और सुख की प्राप्ति होती है । निरोगी काया परम सौभाग्य की बात है और स्वस्थ शरीर से सभी कार्य सिद्ध हो सकते हैं ।)