रोहिंग्या मुसलमान पर हो रहे अत्याचारों और नरसंहार को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सलाहकार का कहना है कि उन्हें प्राप्त सूचनाएं संकेत देती है कि म्यांमार सरकार की मनसा रखाइन राज्य में रोहिंग्या समुदाय का सफाया करने की थी कमबख्त उन्हें पूरी तरह से खत्म करने की. इस मामले में यह भी कहा गया है कि अगर यह साबित हो जाता है तो नरसंहार के अपराध का मामला बनता है.
मिली जानकारी के अनुसार अडामा डीइंग 7 से 17 मार्च तक बांग्लादेश की यात्रा की जिसमें उन्होंने रोहिंग्या समुदाय की स्थिति का जायजा लिया. अडमा ने वहां जो देखा और सुना उससे उनका ह्रदय रौंद उठा, वहां देखी और सुनी घटनाएं मानवीय त्रासदी है और संकेत मिले हैं कि म्यांमार सरकार और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इस में अहम भूमिका है.
डीइंग ने कल अपना बयान पेश करते हुए कहा कि रोहिंग्या आबादी के खिलाफ अगस्त 2017 से चलाया गया इसका अर्थ अभियान प्रत्याशित था इसे रोका जा सकता था. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि उनकी अत्याचार के खतरों की कई चेतावनियों के बावजूद विश्व समुदाय ने भी इस पर आंखें मूंद रखी.
इन सब की वजह से रोहिंग्या समुदाय के लोगों को अपनी जान गरिमा और घरों को गवा कर चुकानी पड़ी. जो की बहुत ही दुखद है. म्यांमार जहां बौद्ध बहुलता है वहां इस समुदाय को जातीय समुदाय के रूप में मान्यता नहीं मिली और उन्हें बांग्लादेश से आए बंगाली प्रवासी बताते हुए देश में अवैध तरीके से रहने के आरोप लगाए गए और उन्हें मारा गया.
देखते ही देखते म्यांमार ने उनकी नागरिकता खत्म कर दी जिससे वे राज्य विहीन हो गए म्यांमार के सुरक्षाबलों ने भी रोहिंग्या समुदाय के गांवों के खिलाफ स्कॉर्चड अभियान चलाया जिसे संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार समूहों ने जातिय सफाया करार दिया है. रोहिंग्या समुदाय के करीब 7,00,000 लोग बांग्लादेश भाग गए, लेकिन कई हजार अब भी उत्तरी रखाइन राज्य में है. डीइंग ने कहा कि रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों ने जो भुगता है वो किसी भी इंसान को नहीं भुगतना चाहिए. हम यह स्पष्ट कर दें कि म्यांमा में अंतराष्ट्रीय अपराध किए गए हैं.