दिघलबैंक, हरूवाडांगा : आप सब आए दिन अखबार के पन्नो में इन मुद्दों को अवश्य देखते होंगे।सोशल मीडिया में भी इन मुद्दों को बार बार लाया जाता है। कभी कभार कार्यवाही भी की जाती है।लेकिन एक बड़ी बात है कि मुख्य सड़कों का हाल अभी भी जर्जर है। भारत-नेपाल सीमा सड़क योजना अंतर्गत जिसपर नाम बड़े और दर्शन छोटे कहावत फिट बैठती है. इसकी वजह से न जाने कितने जगहों की हालत बदतर बनी हुई है। हम बताने जा रहे है धनतोला-दिघलबैंक तथा दिघलबैंक-हरूवाडांगा सड़क के बारे में।
पिछले कुछ वर्षों से यहां के लोग इन सड़कों पर चलने से पहले दुआ व प्रार्थना करते हैं कि सकुशल वापस घर आ जाएं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सड़क के ठेकेदार व अधिकारी इस बड़ी सी योजना का चोला ओढ़ यहां के लोगो का शोषण कर रहे हैं। सत्य जरा कटु होता है। ऐसी बात भी नही है कि यह मुद्दा उठता नही है लेकिन इस योजना से जुड़े लोग किसी की सुनते कहाँ हैं।
आप चित्रों में खुद देखें, किस तरह बुरी स्थिति बनी हुई है। डायवर्सन के नाम पर चंद पुराने ईंट व जरा सा बालू मिट्टी। क्या यही ठोस विकल्प है ? क्या सरकार के पास डायवर्सन के लिए इतना ही बजट होता है ? सवाल अहम हैं।बरसात फिर आने वाली है, अब दिघलबैंक बाजार लोग कैसे जाएंगे, अभी से सोचने लगे हैं। वही दिघलबैंक से हरूवाडांगा जाने के लिए लोगो को करीब 5-6 किलोमीटर का अतिरिक्त रास्ता नापना होगा। एक अहम बात है कि हमारे यहाँ आषाढ़ में भी शादियां होती हैं, लिहाज़ा आप अगर ऐसा सोच रहे हैं तो सावधान हो जाएं। उस समय शादी के रंग में भंग पड़ने की पूरी गारंटी है। आपको लगता है कि इन रास्तों से होकर बारात आएगी या जाएगी ?बरसात के दिनों इन्ही खंडहर रास्तों की वजह से लोगो को बाज़ार से 10 रुपए की जगह 25 रुपए लगाकर सामान खरीदना पड़ता है। इस समय महंगाई यहाँ के लोगो के लिए नासूर बनकर सामने आती है। इसकी वजह साफ है ये रास्ते। अभी भी समय है, डायवर्सन की मरम्मती की जाए। धनतोला-दिघलबैंक सड़क में तो डायवर्सन भी नही है। उस जगह पिछले वर्ष कितने लोग डूबते डूबते बचे थे।जिस में मैं भी शामिल था। अब फिर से लोगो को वही भय धीरे धीरे सताने लगा है।
[स्रोत – निर्मल कुमार]