8 नवंबर को आधी रात से अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रूपये के पुराने नोटों को बंद कर दो हजार रुपए की नई करेंसी जारी कर पूरे देश को चौंका दिया था। नोटबंदी के तहत देश की जनता को पुराने नोटों को बैंकों में जमा करने के लिए 31 दिसंबर तक का समय दिया गया था। नोटबंदी के पीछे सबसे बड़ा कारण कालेधन को खत्म करना और भ्रष्टाचार पर रोक लगाना बताया गया था।
नोटबंदी के लगभग 8 महीने के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने सालाना रिपोर्ट जारी की है जिसमें खुलासा हुआ है कि नोटबंदी जिस उद्देश्य के साथ की गई थी वह उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया, क्योंकि नोटबंदी के दौरान बंद किए गए 500 और 1000 रूपये के नोट 98.7% बैंकों के पास वापस आ गये हैं और जो नोट वापस नहीं लौटे उनका प्रतिशत 1.3 है जो कि ना के बराबर है।
आरबीआई की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नोटबंदी के दौरान प्रतिबंधित किए गए नोटों की संख्या 15.44 लाख करोड रुपए थी जिसमें से 15.28 लाख रुपया बैंकों के पास वापस लौट आया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वित्त वर्ष वर्ष में 1000 रुपये के कुल 8.9 करोड़ नोट जिसका मूल्य 8,900 करोड़ रुपए हैं वह प्रणाली में वापस नहीं लौटा, जबकि उस समय प्रचलन में 1000 रुपये के कुल 670 करोड नोट थे।
आंकड़ों के अनुसार मार्च 2017 तक 8,925 करोड़ के 1000 के नोट सर्कुलेशन में थे सर्कुलेशन नोट वह होते हैं जो रिजर्व बैंक के बाहर हैंं। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि 1000 रूपये के नोट लगभग पूरे वापस आ चुके हैं तो 500 रुपये के नोट भी वापस आ गए होंगे। इन आंकड़ों को देखते हुए खुलासा होता है कि काला धन तो ना के बराबर ही खत्म हुआ है। 15.4 लाख करोड रुपए जो चलन से बाहर किए गए थे उसमें 44 प्रतिशत 1000 के नोट और 56% 500 के नोट थे। आरबीआई के द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के से साफ जाहिर होता है कि नोटबंदी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाई।
नोटबंदी के दौरान आम नागरिकों परेशानी का सामना करना पड़ा, जिसमें अनेक लोगों की जानें भी गईंं जिसे लेकर सरकार ने विपक्ष और जनता का विरोध भी झेेला। 8 महीने के बाद आरबीआई की रिपोर्ट ने सरकार की इस नीति पर कई सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।